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बहुत खूब !

आपसे मुतास़िर मेरा अन्दाज़े बय़ाँ पेश़े ख़िदम़त. है :

तेरी उल्फ़त में सितम़गर हमने ज़माने को क्या भुलाया ज़माने ने हमें भुला दिया।
हमें तो हौस़ला था तूफानों से टकराने का पर तेरी बेरुख़ी की चोट से वो टूट कर बिखर कर रह गया।
हम तो समझे थे रूठना तेरा बहाना है।
हमें इल्म़ न था के हक़ीक़त में ये तेरा मुझसे दूर जाना है।
अब तो तेरी फ़ितरत में मुझे खुदगर्ज़ी नजर आती है।
अब मुझे नाउम्म़ीद ग़ैरों में भी हम़दर्दी दिख जाती है।
लगता है शायद मेरी ग़ुर्बत ही मेरे इश्क़ के आड़े आई है।
और तुझे मेरी दिलो जाँ की मोहब्बत के सिवा अमीरी की श़ोहरत रास आई है।

श़ुक्रिया !

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7 Jun 2020 09:46 PM

आपका जवाब नहीं आदरणीय??

श़ुक्रिया !

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