मान्यताओं को तभी तक माना जा सकता है जब तक वह सामान्य बनें रहें, किन्तु विपरित परिस्थितियों में ऐसे असामान्य कदम उठाने पड़ते हैं, और यदि इस बहन ने यह धर्म निभाया है तो वह निश्चित ही वंदनीय है, उनके जज्बे को प्रणाम!
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मान्यताओं को तभी तक माना जा सकता है जब तक वह सामान्य बनें रहें, किन्तु विपरित परिस्थितियों में ऐसे असामान्य कदम उठाने पड़ते हैं, और यदि इस बहन ने यह धर्म निभाया है तो वह निश्चित ही वंदनीय है, उनके जज्बे को प्रणाम!