सौरभ जी,आपने आज के संदर्भ में महाभारत का चित्रण तार्किक रूप से करके,यह अहसास करा दिया है कि अनुचित के खिलाफ खड़े होने वाले आज हैं भी तो उसी प्रकार के हैं जो कभी धृतराष्ट्र के दरबार में थे,बस सिर्फ प्रतिक्रिया व्यक्त करने तक, बाकी भाग्य भरोसे पर छोड़ देने को विवश। प्रतिकार का जोखिम नहीं लेना है
सौरभ जी,आपने आज के संदर्भ में महाभारत का चित्रण तार्किक रूप से करके,यह अहसास करा दिया है कि अनुचित के खिलाफ खड़े होने वाले आज हैं भी तो उसी प्रकार के हैं जो कभी धृतराष्ट्र के दरबार में थे,बस सिर्फ प्रतिक्रिया व्यक्त करने तक, बाकी भाग्य भरोसे पर छोड़ देने को विवश। प्रतिकार का जोखिम नहीं लेना है