सुखविंद्र सिंह मनसीरत
Author
13 May 2020 06:08 AM
धन्यवाद
घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूं मैं।
कभी इस पग में कभी उस पग बंधता ही रहा हूं मै।
मै करता रहा औरों की कही ।
मेरी बात मेरे मन ही में रही।
फिर कैसा गिला जग से जो मिला।
सहता ही रहा हूं मैं।
घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूं मैं।
श़ुक्रिया !