सौरभ संतांश
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11 May 2020 12:03 AM
समाजिक परिवर्तन के संदर्भ में ‘कभी नहीं ‘ शब्द संयोजन का कोई अर्थ नही है ।हमनें इसी लेखन और जन चेतना को आधार बना कर सती प्रथा जैसी ज़लील बीमारियों से मुक्तिबोध के पथ ओर बढ़ चले थे। बस आवश्यकता है आप हम जैसे खाकसारो की ।
असंवेदशीलता समाज की भर्त्सना कितना भी कर लीजिए पर अमानवीयता कभी पीछा नहीं छोड़ेगी। बहुत सही प्रकाश डाला है आपने शुक्ला जी।