ओनिका जी,निशंन्देह शांतनु ने अपने पुत्र के साथ न्याय नहीं किया था, किन्तु बाद की परिस्थितियों में देवव्रत जी को भी अपने किए गए प्रकरण पर विचार करने को तैयार रहना चाहिए था,जिसे उन्होंने नजर अंदाज कर दिया, और ऐसे विकल्प को चुना जो सभ्य समाज के अनुरूप नहीं था। इससे तो किसी बच्चे को गोद ले लिया जाता और उसे राज पाट सौंपना चाहिए था। लेकिन यह हो गया है, और अब वर्तमान के लिए एक सबक सिखाने का प्रसंग है। आपके उद्गार के लिए आपका आभार व्यक्त करता हूं। धन्यवाद
ओनिका जी,निशंन्देह शांतनु ने अपने पुत्र के साथ न्याय नहीं किया था, किन्तु बाद की परिस्थितियों में देवव्रत जी को भी अपने किए गए प्रकरण पर विचार करने को तैयार रहना चाहिए था,जिसे उन्होंने नजर अंदाज कर दिया, और ऐसे विकल्प को चुना जो सभ्य समाज के अनुरूप नहीं था। इससे तो किसी बच्चे को गोद ले लिया जाता और उसे राज पाट सौंपना चाहिए था। लेकिन यह हो गया है, और अब वर्तमान के लिए एक सबक सिखाने का प्रसंग है। आपके उद्गार के लिए आपका आभार व्यक्त करता हूं। धन्यवाद