Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings

प्रेम की परिभाषा , मानव की अभिलाषा
जगत जननी , दुःखहरणी सृष्टि की अनमोल कृति नारी हूँँ मैं।
संकट मोचनी , पापनाशिनी , दावानल बन जाऊं वह वीरांगना चिंगारी हूँँ मैं।

धन्यवाद !

You must be logged in to post comments.

Login Create Account

उत्तम रचना।
धन्यवाद!

Loading...