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आधुनिक परिवेश में समलैंगिकता को मान्यता प्रदान करने के लिए काफी प्रयास किए जा रहे हैं।
परंतु मेरे विचार से समलैंगिकता एक मानसिक विकृति का परिणाम है। इसे मानसिक स्थिती मान कर इस विकार के मनोवैज्ञानिक चिकित्सा की आवश्यकता है। इस सोच को बढ़ावा देने से सामाजिक व्यवस्था में विसंगतियां पैदा होगींं। और समाज को समलैंगिक संबंधों से उत्पन्न एड्स जैसी बीमारियाँ जो असाध्य हैं से जूझना होगा।
दरअसल पाश्चात्य देश देशों की देखा देखी मैं हमारे युवा दिग्भ्रमित होकर उनमें में व्याप्त बुराइयों को भी अंगीकृत कर लेते हैं। जो हमारे भारतीय परिवेश में सामाजिक व्यवस्था को असंतुलित करने का कारण बनते हैं, जो किसी भी दशा में स्वीकार्य नहीं हैं।
समलैंगिकता के दुष्परिणामों पर विचार किए बिना उस पर सहमति प्रकट करना एक गलत परिपाटी का समर्थन देना है। जो सर्वथा अमान्य है।
मेरे विचार बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वतंत्र स्वतः के विचार हैं। इसका कोई भी संबंध किसी वर्ग विशेष या समूह की विचारधारा से नहीं है।

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