दिल के जज्ब़ातों को जब अल्फ़ाज़ों में पिरो कर पेश कर देता हूं तो खुद ब खुद शायरी बन जाती है। मुझे खुद इल्म़ नहीं इस तरह से कब मैं एक आशिक़ से शाय़र बन जाता हूं।
श़ुक्रिया !
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दिल के जज्ब़ातों को जब अल्फ़ाज़ों में पिरो कर पेश कर देता हूं तो खुद ब खुद शायरी बन जाती है।
मुझे खुद इल्म़ नहीं इस तरह से कब मैं एक आशिक़ से शाय़र बन जाता हूं।
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