आपके विचारों से मैं सहमत हूं संस्कार विहीन समाज की कल्पना भी भयावह लगती थी। परंतु आज युवा पीढ़ी को देखते हुए लगता है कि हम उस ओर अग्रसर हो रहे हैं। दरअसल इसमें दोष केवल उनका ही नहीं उनके पालकों का भी है। उन्होंने धन कमाने और भौतिक सुविधाएं जुटाने में अपने निहित संस्कारों को दांव पर लगा दिया है। उनका ध्यान बच्चों की हर जरूरत पूरी करने और उन्हें सुविधाएं देने में रहा है। घर में बड़े बूढ़ों का अभाव जो संस्कार प्रदान करने में एक अहम भूमिका निभाते हैं बच्चों में संस्कार विहीनता कारण बना है। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी बच्चों में अनुशासनहीनता एवं उद्दंडता का एक कारण है। जब पालक संस्कारों का पालन नहीं करेंगे तो वह अपने बच्चों में संस्कारों कैसे विकसित कर सकते हैं। जिसके फलस्वरूप वर्तमान में संस्कार विहीन युवा पीढ़ी का उद्भव हुआ है। समाज में संस्कारों के प्रति जागरूकता पैदा करने पर ही युवा पीढ़ी को सही दिशा की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करना संभव हो सकेगा।
एक ज्वलंत विषय पर विचार प्रस्तुत करने का हार्दिक स्वागत है।
आपके विचारों से मैं सहमत हूं संस्कार विहीन समाज की कल्पना भी भयावह लगती थी। परंतु आज युवा पीढ़ी को देखते हुए लगता है कि हम उस ओर अग्रसर हो रहे हैं। दरअसल इसमें दोष केवल उनका ही नहीं उनके पालकों का भी है। उन्होंने धन कमाने और भौतिक सुविधाएं जुटाने में अपने निहित संस्कारों को दांव पर लगा दिया है। उनका ध्यान बच्चों की हर जरूरत पूरी करने और उन्हें सुविधाएं देने में रहा है। घर में बड़े बूढ़ों का अभाव जो संस्कार प्रदान करने में एक अहम भूमिका निभाते हैं बच्चों में संस्कार विहीनता कारण बना है। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी बच्चों में अनुशासनहीनता एवं उद्दंडता का एक कारण है। जब पालक संस्कारों का पालन नहीं करेंगे तो वह अपने बच्चों में संस्कारों कैसे विकसित कर सकते हैं। जिसके फलस्वरूप वर्तमान में संस्कार विहीन युवा पीढ़ी का उद्भव हुआ है। समाज में संस्कारों के प्रति जागरूकता पैदा करने पर ही युवा पीढ़ी को सही दिशा की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करना संभव हो सकेगा।
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धन्यवाद !