Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Apr 2020 02:43 PM

श्याम सुंदर जी, आपने इस विषाणु के प्रभाव से उत्पन्न हो रही विकट परिस्थितियों पर अपनी राय प्रकट की है!यह समय इस महा मारी से जूझने का है,साथ ही इसके लिए भी की हमने भौतिक सुख-साधनों के प्रति ज्यादा ही आग्रही होते जा रहे हैं,जबकि अपनी व देश के आम आदमी की जरूरतों को उपेक्षित कर उस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं,इसका प्रणाम यह हुआ कि वह गरीब-मजदूर,एवं खेती किसानी करने वाले बहुत पीछे रह गए और आज जब उनसे यह अपेक्षा की जा रही है कि वह धैर्य से काम लें,तो यह बात उसके लिए कोई मायने नहीं रखती है,क्योंकि उसकी पहली प्राथमिकता अपने पेट की भूख व बच्चों के भोजन से आगे सोचने का अवसर ही नही देता!और हमारे नीति नियंताओं ने भी,उसके सामने आने वाली इस समस्या से किनारा कर के सिर्फ अपना फरमान जारी करने पर जोर दिया,दो दिनों तक यह यही अपेक्षा करते रहे हैं कि कोई तो उनकी सुध लेगा,किन्तु हताश-निराश जब यह सड़कों पर निकल कर उन्हीं घरों की ओर निकल पड़े, जिसे वह अपनी रोजी रोटी के लिए छोड़ कर प्रदेशों में गए थे!यह शासन तंत्र की विफलता का एक और उदाहरण है, वहीं दूसरी ओर सरकार ने उन लोगों के बारे में नहीं सोचा,जो पिछले कई दिनों से अपने लिए देश से एक कानून में संशोधन की खिलाफ खड़े थे,सरकार ने उनकी बैठकों पर नज़र नहीं रखी कि वह किस उद्देश्य से हो रही है, और इस समय इसे रोका जाना चाहिए! वह लोग भी सरकार को सहयोग करने से अलग हो गए!आदेशों का पालन नही किया,स्वयं तो प्रभावित हुए हैं किन्तु अन्य लोगों को भी प्रभावित कर गए! यह सब कुछ भूल,व भरोसे की कमी के कारण हुआ है! ऐसे में जो लोग सत्ता के कारक हैं,उन्हें भी दोषी ठहराया जाना चाहिए! विपक्ष की बातों को भी नज़र अंदाज करना या कहें कि उसका उपहास उड़ाने का काम करना,ऐसे लोगों को प्रसय देना,जो कोई आलोचना करे,उन्हें देश के विरुद्ध बताना आदि ऐसे कार्य हुए हैं, जिसने लोगों को सुझाव देने व कुछ कहने से रोकने का काम किया है! यह चिंता का विषय है।

You must be logged in to post comments.

Login Create Account
15 Apr 2020 03:34 PM

आपके कथन से मैं सहमत हूं। भूखे पेट के लिए रोजी रोटी जुटाना ही प्राथमिकता है। शासन की विफलता का का कारण योजनाबद्ध तरीके से समस्याओं का निराकरण न करना है। विपक्ष की भूमिका भी इस विषय सोचनीय है। हमेशा सरकार के विरुद्ध लोगों को उकसा कर अपना राजनीतिक उद्देश्य सिद्ध करना उसकी नीति रही है। सरकार द्वारा जनहित मे किये गये कार्यों मे सहयोग के स्थान पर खोट निकालना विपक्ष ने अपना परम कर्तव्य मान लिया है। राष्ट्रहित के मुद्दों पर भी एकजुट होकर सरकार का साथ नहीं दिया है। जिसके फलस्वरूप उसने जनता में एक ऐसे वर्ग का निर्माण किया है जो हमेशा सरकारी आदेशों की अवहेलना करता आया है । जिसको प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में उसका समर्थन हासिल है। जब तक विपक्ष अपनी मनोवृति में परिवर्तन नहीं लाता तब तक इस प्रकार की विसंगतियां होती रहेगी। सरकार को भी नीतिगत निर्णय लेने मे विपक्ष का सुझाव भी आमंत्रित कर उस पर विचार करना चाहिए। जिससे क्रियान्वयन मे विपक्ष रोड़े ना अटकाए अपितु एक सार्थक भूमिका निभाए। विपक्ष को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय भावना से कार्य करना चाहिए तभी देश का समग्र उद्धार संभव है।

15 Apr 2020 11:39 PM

निश्चय ही,मै विपक्ष की पैरवी करने का प्रयास नहीं कर रहा हूँ, किन्तु वह भी इसी देश के प्रतिनिधि हैं भले ही वह संख्या बल मे कम ही सही,किन्तु उन्हें भी भारत के लगभग नौ-दस करोड़ लोगों के मत प्राप्त हए हैं,इतना बड़ा संकट आया,और विपक्ष के लोगों को चर्चा तक के योग्य नहीं समझा गया। विश्वास में लेना तो दूर की बात है ! ऐसे में ही विपक्ष अपनी भडाष निकालने के लिए,असंभव से लगने वाले लक्ष्य सामने रखता है,और भोले-भाले वह लोग जो यह फर्क नहीं कर पाते कि यह जो सुझाव दिए गए हैं सरोकार उसका पालन क्यों नहीं करती। इसलिए सर्वोच्च को विपक्ष के हर प्रतिष्ठित व्यक्ति को जो,राय सरकार को देने का इरादा रखता है, उसके लिए अवसर प्रदान करने के लिए आमंत्रित करना था,अब भी समाज सेवा में जुटे लोगों के सुझाव लेकर आगे बढ़ने की आवश्यकता है। प्रशासन के अधिकारी के पास जनता की पहुँच कम होती है, और अहम ज्यादा इसलिए जनता के वह लोग जो बिना पदों पर बैठे भी सेवा में लगे हैं,उनके सुझाव लेकर जो किया जा सकता है करना चाहिए,वह भी उन्हीं के साथ मिलकर!इसमें पार्टी के कार्यकर्ता को तभी शामिल किया जाना चाहिए,जब तक वह दलीय आधार पर कार्य करने की कुचेष्ठा से प्रेरित न हो,नहीं तो वह सरकारी धन का दुरुपयोग अपने दलीय हितों के लिए करने लगते हैं,यह हमने भूकंप,बाढ,वअन्य आपदाओं मे देखा है। खैर यह मेरे विचार हैं,करना तो सरकार को ही है, और वह करेगी भी अपने अनुसार,अपने हिसाब से।

Loading...