माफी चाहता हूँ डॉ. साहिबा आप की हाइकु में कहीँ भी दो बिम्ब नहीं दिख रहे …… ऐसा लग रहा है की एक ही लाइन को 5-7-5 में लिखा गय़ा है ……मेरे हिसाब से सुधार की ज़रूरत होगी … मेरा एक हाइकु …. तपती भूख , आज रात का चाँद , रोटी सा लगा !!
जमीर बेचा , था दौलत का अंधा ! मरा या जिंदा !!
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माफी चाहता हूँ डॉ. साहिबा
आप की हाइकु में कहीँ भी दो बिम्ब नहीं दिख रहे ……
ऐसा लग रहा है की एक ही लाइन को 5-7-5 में लिखा गय़ा है ……मेरे हिसाब से सुधार की ज़रूरत होगी …
मेरा एक हाइकु ….
तपती भूख ,
आज रात का चाँद ,
रोटी सा लगा !!
जमीर बेचा ,
था दौलत का अंधा !
मरा या जिंदा !!