आर.एस. 'प्रीतम'
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21 Mar 2020 10:20 AM
आभार बंधु!
आभार बंधु!
वाह! आदरणीय। बहुत ही प्रेरणादायिनी सुन्दर सृजन। वास्तविकता की ओर सुन्दर संकेत वास्तव में जो मानव पाश्चात्य संस्कृति में रच-बस गया था, उसने अब भारतीय संस्कृति को अपनाना स्वीकार किया है। मेरा मानना है कि हमारे श्रेष्ठतम पूज्यनीय पूर्वजों ने बहुत हीसोच- समझकर इन सारे विधि-विधानों, संस्कारों को निर्मित किया था। इन संस्कारों का तिरस्कार ही हमें आज की वस्तुस्थिति की ओर मोड़ गया है।