Seema katoch
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20 Mar 2020 10:47 AM
धन्यवाद ji
धन्यवाद ji
प्रवाहपूर्ण एवं भावपूर्ण रचना ऐसा प्रतीत होता है जैसै शब्द बोल रृहे हैं
मानवीय मूल्यो जैसै दोस्ती वफा और ईमानदारी के क्षरण से कवियत्री क्षुब्ध है पर शोक्ग्रस्त और दुखी न होने को अपने हृदय को समझाती है।
समाज के चलन के अनुसार व्यक्ति के बदलने को स्वीकार तो कर लेती है परंतु क्षमा नहीं कर पाती है।
अन्त मे कालचक्र के नियम का सहारा लेकर अपने को संतुष्ट कर लेती है।
बहुत बहुत बधाई, देवी सरस्वती का आशीर्वाद ही है कि इतनी शीघ्र इतनी सारी सुन्दर रचनाये कर पाती हैं।
ईश्वरीय कृपा बनी रहे