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8 Mar 2020 05:22 PM

“पकड़ में आएगा
वो नायाब पंछी
जिसकी बोली में हो
एक दहाड़ सी
और दृढ़ता हो
किसी पहाड़ सी
बिन कहे भी
जो कह जाए
दास्तान अपनी
ऊंची उड़ान की…”

इन्द्रधनुष के अनेकों रंगो की तरह, चहचाहट से दहाड़ तक फिर उड़ान ,कोमल से सबल तक शब्दों की उत्तरोत्तर झडी सी लगा दी। पहले भी अपको शब्दो का जादुगर कहा था पर अब विश्वास और सुदृढ हो गया है।
रचना में पंछियोको पकडने का बाल सुलभ कौतूहल दर्शा रहा है कि पृकृति के प्रति नैसर्गिक स्नेह रहा है। मन्द बयार की तरह ताजगी भरी यह कविता बहुत अच्छी लगी।

बधाई व शुभकामनाएँ ।

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8 Mar 2020 11:08 PM

अगर रचनाओं को यही स्नेह मिलता रहा तो मुझे लगता वो नायाब पंछी जल्द ही पकड़ में आ जाएगा,,, बहुत बहुत धन्यवाद

9 Mar 2020 11:27 PM

कस्तुरी कुंडल बसै,मृग ढूढ़ै वन माहि

नायाब पँछी तो आपके अंदर विराजमान काव्य प्रतिभा है जो भावों के अनुकूल पाठक जनों का मन मोह रहा है।

11 Mar 2020 09:38 PM

Thanks for inspiration

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