Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings

जिंदगी में बहुत फरेब खाएं हैं।
अब तक ना होश में आएं हैं ।
न जाने कब खत्म होगा ये ग़मों का सिलसिला।
और कब मिलेगा मुझे सुकून और जिंदगी का सिला।

श़ुक्रिया !

You must be logged in to post comments.

Login Create Account

रचना पसंद करने हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद महोदय ।

Loading...