जमाने की हवा कुछ इस क़दर है ए दोस्त। कल तक जो था ख़िदमतग़ार आज अपने को हाक़िम समझता है। श़ुक्रिया !
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जमाने की हवा कुछ इस क़दर है ए दोस्त।
कल तक जो था ख़िदमतग़ार आज अपने को हाक़िम समझता है।
श़ुक्रिया !