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डॉ बशीर बद्र के जन्म दिवस के मौके पर आपके द्वारा प्रस्तुत श्रद्धा सुमन का स्वागत है।
इस मौके पर मैं उनकी एक रचना पेश करना चाहूंगा

ख्वाब जिस दिल में रहा करते थे कब का मर चुका ।किस का दरवाजा ये बच्चे खटखटाने आए हैं।
बारहा इस घर का बटवारा हुआ है आज तक।
अपने हिस्से में सदा दुःःख के खजाने आए हैं ।
चार दुश्मन आ मिले हैं रात की छत के तले।
मुद्दतों के बाद फिर अगले जमाने आए हैं।

श़ुक्रिया !

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