रवि सर!
आपने ठीक ही कहा, विचार तो सब के पास हैं। मेरे शब्द दैनिक प्रयोग के हैं, इसलिए विद्वान भी नहीं हूँ। हाँ, साहित्य और कला जीवन के लिए अपरिहार्य है। इसलिए अभिव्यक्ति मेरे जीने की कोशिश है। इस राह चल पड़ा तो किसी और रास्ते भटकने से बच गया। आभारी हूँ, हौसला बढ़ाने के लिए।
Vichaar toh sabke pass hain. Lenin unko shabdon ke aabhushan pehna kar, ek sunder roop mein prastut karna, koi aapse seekhey.
Iss uttam rachna ke srijan me liye badhai.
शहादत कभी बेकार नहीं जाती ।
अमर शहीदों को याद रखना न केवल हमारा कर्तव्य मात्र है बल्कि सच्चे अर्थों में कविता वही है जिसमें शहीदों को याद किया जाए या प्रभु का गुणगान किया जाए ।
वाह क्या बात है ? बंधुवर ।
सुंदर सृजन के लिए आपको साधुवाद और आशीर्वाद ।
आपका बड़ा भाई
ईश्वर दयाल गोस्वामी ।