Comments (6)
24 Jul 2016 08:57 AM
वाह्ह्ह्ह कुलदीप जी लाजवाब 1
Mahesh Kumar Kuldeep "Mahi"
Author
25 Jul 2016 12:13 PM
आपका तहेदिल से शुक्रिया जी
23 Jul 2016 02:11 PM
वाह! माहीभाई जी, खूव सूरत गजल के लिए दिली दाद कुबूल करें।
Mahesh Kumar Kuldeep "Mahi"
Author
25 Jul 2016 12:12 PM
आपका तहेदिल से शुक्रिया जी
आदरणीय कुलदीप जी अच्छी गजल है. किन्तु अंत के दोनों ही अशआर गड़बड़ा गए हैं. देख लें
ज़रा सी हुस्न की दौलत हमारे नाम भी कर दे
ये दौलत जो मिले हमको तो हम सुलतान हो जाये/ जाएँ
न बदले तुम न बदले हम न बदले ये सफ़र ‘माही’
हमारा तुम तुम्हारा हम चलो ईमान बन जाये……….बन जाए / हो जाए ?
जी अशोक जी ! आपने गौर किया और गलतियों की ओर ध्यान दिलाया , इसके लिए आपका धन्यवाद | मैं इन्हें दूर करता हूँ |