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सावन की फुहार में, भीगना है मुझे । महसूस करना है तपन को, जेठ की दुपहरी में, रेत में, आलिंगन करना है शीत का, पूष की ठिठुरी बर्फ में । हर एक ऋतु देखूँगा मैं, तुम ऋतुएँ बदल-बदल लाओ
जानना है मुझे, सपनों का सँसार क्या है ।
बहुत सुंदर।
धन्यवाद आपका अतुल जी बहुत बहुत आभार 🙏🙏
देखना है मुझे, उस क्षितिज के पार क्या है
महसूस करना है तपन को, जेठ की दुपहरी में, रेत में
हर एक ऋतु देखूँगा में, तुम ऋतुएँ बदल-बदल लाओ
सावन की फुहार में,
भीगना है मुझे ।
महसूस करना है तपन को,
जेठ की दुपहरी में, रेत में,
आलिंगन करना है शीत का,
पूष की ठिठुरी बर्फ में ।
हर एक ऋतु देखूँगा मैं,
तुम ऋतुएँ बदल-बदल लाओ