Comments (14)
11 Aug 2016 05:35 PM
लाजबाब
Dr Archana Gupta
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22 Sep 2016 08:25 AM
हार्दिक आभार आपका
21 Jul 2016 03:54 PM
मार्मिक रचना …. बधाई सम्मानित अर्चना जी
Dr Archana Gupta
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23 Jul 2016 09:37 PM
हार्दिक आभार
19 Jul 2016 12:53 AM
सिखाया था जहाँ चलना पकड़कर उँगलियाँ मेरी
निकलती हूँ वहाँ से जब रुलाती वो गली पापा ….. मार्मिक रचना …. बधाई सम्मानित अर्चना जी .
Dr Archana Gupta
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23 Jul 2016 06:45 PM
हार्दिक आभार आपका
18 Jul 2016 01:32 PM
Are waaaaah wash archna ji khoob kaha
Dr Archana Gupta
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23 Jul 2016 06:42 PM
हार्दिक आभार आपका
18 Jul 2016 12:44 PM
वाह ! खूब भावपूर्ण सृजन हुआ है. बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीया डॉ. अर्चना गुप्ता जी. /अँधेरी रात हो कितनी भरे तुमने उजाले ही/ …..’हो’ पर विचार करें.सादर.
Dr Archana Gupta
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22 Jul 2016 01:08 PM
दिल से आभार आपका ।हो वाली बात समझी नही मैं । कृपया विस्तार से बताएं
Dr Archana Gupta
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2 Jul 2016 09:11 AM
हार्दिक धन्यवाद dk nivatiya जी
22 Jun 2016 06:14 PM
पिता को समर्पित ह्रदय को स्पृश करती सुन्दर भावो से सुसज्जित अच्छी रचना !!
Dr Archana Gupta
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18 Jul 2016 06:20 PM
धन्यवाद आपका
Bahut khub …