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मन ही मन बुदबुदा रही थी मैं, लग रहा था मैंने अपना दुख अपने बेटे तक पहुचा दिया हैं
वाह्ह्ह्ह आभा जी बहुत बढिया लघु कथा1
Nirmala जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका जो आपने मेरी रचना को सराहा ..
मन ही मन बुदबुदा रही थी मैं, लग रहा था मैंने अपना दुख अपने बेटे तक पहुचा दिया हैं