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अतिसुंदर व्याख्यापूर्ण प्रस्तुति। धन्यवाद ! इस विषय में मैं संक्षिप्त में यह कहना चाहूंगा कि दुनिया में दो तरह के व्यक्ति होते हैं एक नेतृत्व करने वाले दूसरे उनका अनुसरण करने वाले। संसार की दशा एवं दिशा का निर्धारण प्रथम प्रकार के व्यक्तियों द्वारा होता है। दूसरे प्रकार के व्यक्ति प्रथम प्रकार के व्यक्तियों के दिशा निर्देशों पर चलते हैं जो उनका जीवन निर्धारित करती है। इस प्रकार के व्यक्तियों के लिए स्वाधीनता या पराधीनता के कोई मायने नहीं होते , जब तक उनका स्वार्थ सिद्ध होता रहे वे सुखी एवं प्रसन्नचित्त रहते हैं। स्वार्थ सिद्ध न होने पर बगावत करने के लिए तैयार रहते हैं । जिसके लिए वह नेतृत्व परिवर्तन के लिए भी तैयार रहते हैं उन्हें स्वयं की स्वाधीनता का कोई अर्थ नहीं है अपने स्वार्थ के लिए उन्हें दूसरों की गुलामी भी मंजूर है । हमारे देश की वस्तुःःस्थिति यही है जिसे नकारा नहीं जा सकता है। यह मुद्दा एक बहुत बड़ी बहस का विषय है। धन्यवाद !

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