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अदा उपन्यास के अंतर्गत आपने भारतीय समाज की सबसे दुखती नस पे प्रहार करने की सफलतम कोशिश किया है गुरुदेव…इसके लिए आपको सादर बधाई…हमारे भारतीय परिवेश में ऐसे भी समाज निवासरत है जिनके विकास के लिए बनाई गई योजनाएं सिर्फ कागजों में सिमट कर रह जाती है। आपकी कलम इसी तरह हमेशा चलती रहे और भारतीय परंपराओं में निहित कमजोरियों को उजागर करती रहे इसी आशा और विश्वास के साथ आपको आपकी खूबसूरत उपन्यास अदा हेतु पुनः बधाई…

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