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30 Aug 2021 07:32 PM

श्रीमान,
अपनी-अपनी सोचने की शक्ति है मेरे लिए तो कृष्ण सर्वत्र हैं, आस्था को अर्थ की आवश्यकता नहीं होती ,कर्म ही भक्ति का एकमात्र सफल मार्ग है …अकर्मण्यता कभी भक्ति विकसित नहीं कर सकती।

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