उर्दू को एक मजहब से जोड़कर देखना सही नहीं है। उर्दू हिंदुस्ताँ की ज़ुबाँ है। बहुत से नामी-गिरामी उर्दू अदीब और दानिश-मंद हिंदू भी हुए और हैं ।
आबरू को सामां समझ तिजारत करने वाले , कभी अपनों की आबरू का भी सौदा
कर जाएगा ,
अपनों की लुट चुकी आबरू पर ज़िंदगी भर पछतायेगा ,
इधर उधर क्यूँ भटकता है , खुदा तो तेरी मां के अक्स में बसता है ,
बरकत तभी होती है , जब मां के कदमों में सज्दा होता है ,
श़ुक्रिया !
उर्दू को एक मजहब से जोड़कर देखना सही नहीं है। उर्दू हिंदुस्ताँ की ज़ुबाँ है। बहुत से नामी-गिरामी उर्दू अदीब और दानिश-मंद हिंदू भी हुए और हैं ।
आबरू को सामां समझ तिजारत करने वाले , कभी अपनों की आबरू का भी सौदा
कर जाएगा ,
अपनों की लुट चुकी आबरू पर ज़िंदगी भर पछतायेगा ,
इधर उधर क्यूँ भटकता है , खुदा तो तेरी मां के अक्स में बसता है ,
बरकत तभी होती है , जब मां के कदमों में सज्दा होता है ,
श़ुक्रिया !