चाहे तो जिस्म़ो जाँँ ले लो , पर रुह में चाहत की पैब़स्तगी छोड़ दो , श़ुक्रिया !
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सादर प्रणाम। बहुत खूब। धन्यवाद ‘ईमानदारी में लिपटा इश्क’ गौतम साव
चाहे तो जिस्म़ो जाँँ ले लो , पर रुह में चाहत की पैब़स्तगी छोड़ दो , श़ुक्रिया !