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6 Oct 2021 · 1 min read

हमर व्यथा एकलव्य सनक अछि

हमर व्यथा एकलव्य सनक अछि
हारल आऔर झमारल।
कतेक दिन रहबै हम वंचित,
जियब उपेक्षाक मारल।।
अंगुठा पहिनहि काटल गेल,
हम ग्रसित छी कुण्ठासँ।
रखने छी हम प्राण देहमे
की आशा उत्कण्ठासँ।।
ठण्ठ बूझि कण्ठ के कटला,
चण्ठ छला गुरूदेव हमर।
लण्ठे आखिर भेला किएक ओ,
पामर छल की सभा सगर।।
हम अपन सर्वस्व लुटा देब,
आब अंगुठा देब मुदा नञि।
सावधान हे गुरूवर हमरो!
अहुँ अंगुठा लेब मुदा नञि।।
एक हाथक अछि कटल अंगुठा,
एक हाथक अछि बाँचल।
पौरूष पामर जाग दुष्ट तुँ!
आब दिमाग किछु नाँचल।।
गुरुवर के न्यायिक चरित्र,
आऔर रक्त चरित्र मे खामी।
ताँइ हमर अंगुृठा कटलनि,
प्रतिभा छल जे दामी।।

Language: Maithili
211 Views
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