” उपाधि ….उपनाम “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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हम लिखि नहि सकैत छी
कविता आ लेख
उपाधि त कियो देलनि नऽ
त अपने नामक आगू पाछू
लगा लेलहुं उपनाम
कहय लगलहूँ अपना कें
‘कवि’…’लेखक ‘..आ ‘साहित्यकार ‘!!
अभिनय केर भंगिमा जीवन पर्यंत
सिखलहूँ नहि ..अपने मने बनि गेलहुं ‘कलाकार ‘!
नाटक मंच कें कहियो कहियो शोभित नऽ केलहुं
नहि नाटक मंचित हमरा सं कयल गेल
आब हम बनि गेलहुं ‘नाटककार ‘ !
कखनहूँ हम आंबेडकरक
भक्त हम बनि जाइत छी !
विभेद रहितो गाँधी ..पटेलक
पुजारी हम भऽ जाइत छी !!
परंच सबकें ज्ञान छैन्हि
हम की छी…केहन छी
तकर सबकें अनुमान छैन्हि !!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
दुमका
झारखंड
भारत