” अखनहुँ धरि किछु नहि भेल “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
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आइ विचित्र परिवेश मे हम सब रहि रहल छी ! कहबा क लेल अपन परिवार अछि मुदा परिभाषा बदलि गेल ! पहिने बाबा, दाई ,माय ,बाबू ,कक्का ,काकी ,बच्चा लोकनिक समूह केँ परिवार बुझल जाइत छल ! हुनके लोकनिक सानिध्य मे व्यक्तित्व विकास होइत छल ! शिष्टाचार ,मृदुलता आ आपसी मेल जोलक मौलिक पाठ पढ़ाओल जाइत छल !
समाजिकता ,स्नेह अनुराग ,सहयोगिता आ सामंजसक पाठशाला सम्पूर्ण गाम छल ! मातृभाषा सँ प्रेम स्वतः प्रगाढ़ भ जाइत छल ! अध्ययन -अध्यापनक प्रक्रिया घरे मे चलैत छल ! समय सँ उठब ,स्नान ध्यान नित्य क्रिया करि स्कूल गेनाइ ,स्कूल सँ एनाइ ,भोजन मिलजुल केँ केनाइ ,पढ़नाइ -लिखनाइ आ प्रतियोगिता क सञ्चालन पैघ लोकक नेतृत्व मे होइत छल !
एहिठाम धरि बुझू मध्यांतर छल ! आब परिवर्तनक चक्र चलल खेल क दृश्य मे परिवर्तन भेल ! विखंड़ित परिवारक दृश्य भ गेल ! परिवारक परिभाषा बदलनाई स्वाभाविक अछि ! हम दू गोटे आ अपन मात्र बच्चा ! पुरनका परिवारक चर्चा आब किस्सा पिहानी भ गेल ! गाम छोड़ल ,संस्कार छोड़ल आ रीति रिवाज़ सब बिसरि गेलहुँ !
अपन भाषा आब बच्चा लोकनि बुझबे नहि करैत छथि ! भाषा क ज्ञान आ प्रेम क मध्यमे हम अपना माटि -पानि सँ जुड़ि सकैत छी अन्यथा गाम मे सबगोटे अनभुआर कहताह आ तिरष्कार करताह ! शहरो मे एक घर मे रहितो आइसोलेशन मे रहबाक अनुभूति भ रहल अछि !
सब गोटे अपन -अपन मोबाइल मे व्यस्त छी ! हम इंटरनेट क आनंद ल रहल छी ! कानियाँ स्मार्ट दूरदर्शन पर लागल छथि ! बच्चा सबकेँ लैपटॉप देने छियनि ! ऑनलाइन क्लास मे लागल छथि ! किनको यथायोग्य समुचित समय नहि छैनि जे अपन चारि गोटे क सीमित परिवारक सङ्गे समय बिताबि !
पिता की करैत छथि ? माय कथि मे व्यस्त छथिन ? बच्चा बुच्ची जे करैत छथि तकर कोनो चिंता नहि ……परिवारक स्वरुप बदलि गेल समयक सुनामी मे ! शहर आबि बसि गेलहुँ सेहो स्वीकार अछि !
“मुदा अखनहुँ धरि किछु नहि भेल ” ……समय पर्याप्त अछि …बच्चा सभक संग रहू .मातृभाषा मे गप्प करू ..गामक दर्शन करैत रहू आ समाज सँ सदैव जुड़ल रहू !
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका