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19 May 2016 · 1 min read

ग़ज़ल

ए मुहब्बत ज़रा करम कर दे,
इश्क़ को मेरे मोहतरम कर दे।

कर अता वस्ल के हसीं लम्हे,
दूर फ़ुर्क़त का दिल से गम कर दे।

दिल की बंज़र ज़मीन सूखी है,
प्यार की बारिशों से नम कर दे।

सच ही बोलेगी ये ज़ुबाँ मेरी,
चाहे मेरी ज़ुबाँ क़लम कर दे।

दास्ताँ अपने इश्क़ की जानाँ
दिल के किरतास पे रक़म कर दे।

जब सताए फरेब दुनिया के,
आयते इश्क़ पढ़ के दम कर दे।

दीपशिखा सागर-

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