नन्हीं परी
//नन्हीं परी//
१७/०५/२०२१, की सुबह यकायक योजना बनी,आज मेरे फुफेरे भाई का तिलकोत्सव था।
मेरी जाने की कोई योजना नहीं थी, किंतु दादीजी की प्रबल इच्छा थी। अतः मुझे विवश होकर जाना पड़ा।
हम बुआ जी के यहांँ पहुंँच आए। मैं लगभग 5 वर्ष पूर्व यहांँ आया था, अतः 5 वर्षों में यहांँ बहुत कुछ परिवर्तित हो चुका था। मैं वहांँ बहुत कम लोगों से परिचित था,अतः दादी और पिताजी ने सभी से परिचय करवाया।सभी से मिलने के बाद मैं छत पर चढ़ गया,जहांँ पहले से कुछ संबंधी जन अलग–अलग समूह में बैठकर वार्तालाप कर रहे थे। मैं भी एक गद्दा लेकर एकांत में बिछाकर फोन में व्यस्त हो गया।
कुछ समय पश्चात एक नन्हीं–सी परी फोन चलाती हुई मेरे पास आकर बैठ गई।
नाम पूछने पर बोली, “निशू”।
उसकी बोली में जैसे मिश्री घुली हो।अपनी बातों से मन मोह लेनी वाली वो प्यारी गुड़िया धीमे स्वर में बोली,“भैया आपका क्या नाम है?”
मैंने उत्तर दिया,“मनीष”।
मैंने पूछा,“निशू कौन–सी कक्षा में पढ़ती हो”
फोन चलाती हुई बोली,“U.Kg.”।
इसी प्रकार मैंने कई प्रश्न किए, वो हाजिर जवाब,सभी के उत्तर बारी–बारी से देती गई।
उसमे मुझे विलक्षण प्रतिभा साफ छलक रही थी।
उस बच्ची के संदर्भ में ये मुहावरा सटीक लगता है–“होनहार बिरवान के होत चिकने पात।”
मन में यही विचार चल रहे थे, तभी वो चिड़िया–सी चहकती हुई बोली, “भैया! चेस खेलेंगे?”
हांँ, मैंने में उत्तर दिया।
और हम खेलने लगे।
हम दो बार खेले,पहले मैं जीता फिर वो।
मेरे मुख पर आनंद के भाव थे,वो खिलखिलाकर, उछलती हंँसती हुई बोली,“भैया!मैं जीत गई, आप हार गए।”
वो विकार रहित,निश्छल हंँसी निश्चित ही मन मोह लेने वाली थी, ये एक सुखद अनुभव था। जैसे किसी मंदिर में ईश्वर के सम्मुख बैठकर होता है। शायद इसलिए कहते हैं,बच्चों में ईश्वर बसते हैं। जहांँ सभी तनाव,थकान और विकार दूर हो जाते हैं।
#मौर्यव
#नन्हीं_परी_निशू
//नन्हीं परी//
१७/०५/२०२१, की सुबह यकायक योजना बनी,आज मेरे फुफेरे भाई का तिलकोत्सव था।
मेरी जाने की कोई योजना नहीं थी, किंतु दादीजी की प्रबल इच्छा थी। अतः मुझे विवश होकर जाना पड़ा।
हम बुआ जी के यहांँ पहुंँच आए। मैं लगभग 5 वर्ष पूर्व यहांँ आया था, अतः 5 वर्षों में यहांँ बहुत कुछ परिवर्तित हो चुका था। मैं वहांँ बहुत कम लोगों से परिचित था,अतः दादी और पिताजी ने सभी से परिचय करवाया।सभी से मिलने के बाद मैं छत पर चढ़ गया,जहांँ पहले से कुछ संबंधी जन अलग–अलग समूह में बैठकर वार्तालाप कर रहे थे। मैं भी एक गद्दा लेकर एकांत में बिछाकर फोन में व्यस्त हो गया।
कुछ समय पश्चात एक नन्हीं–सी परी फोन चलाती हुई मेरे पास आकर बैठ गई।
नाम पूछने पर बोली, “निशू”।
उसकी बोली में जैसे मिश्री घुली हो।अपनी बातों से मन मोह लेनी वाली वो प्यारी गुड़िया धीमे स्वर में बोली,“भैया आपका क्या नाम है?”
मैंने उत्तर दिया,“मनीष”।
मैंने पूछा,“निशू कौन–सी कक्षा में पढ़ती हो”
फोन चलाती हुई बोली,“U.Kg.”।
इसी प्रकार मैंने कई प्रश्न किए, वो हाजिर जवाब,सभी के उत्तर बारी–बारी से देती गई।
उसमे मुझे विलक्षण प्रतिभा साफ छलक रही थी।
उस बच्ची के संदर्भ में ये मुहावरा सटीक लगता है–“होनहार बिरवान के होत चिकने पात।”
मन में यही विचार चल रहे थे, तभी वो चिड़िया–सी चहकती हुई बोली, “भैया! चेस खेलेंगे?”
हांँ, मैंने में उत्तर दिया।
और हम खेलने लगे।
हम दो बार खेले,पहले मैं जीता फिर वो।
मेरे मुख पर आनंद के भाव थे,वो खिलखिलाकर, उछलती हंँसती हुई बोली,“भैया!मैं जीत गई, आप हार गए।”
वो विकार रहित,निश्छल हंँसी निश्चित ही मन मोह लेने वाली थी, ये एक सुखद अनुभव था। जैसे किसी मंदिर में ईश्वर के सम्मुख बैठकर होता है। शायद इसलिए कहते हैं,बच्चों में ईश्वर बसते हैं। जहांँ सभी तनाव,थकान और विकार दूर हो जाते हैं।
मौर्यवंशी मनीष ‘मन’
भरवारी कौशांबी।