●●●गुजरते वक्त को न रोक पाती हूँ मैं●●●
गुजरते वक्त को न रोक पाती हूँ मैं
◆ गुजरते लम्हो को न रोक पाती हु मैं,,,
कभी गम, कभी ख़ुशियाँ संग इनके पाती हूँ मैं।
◆ दिनरात,साल महीने गुजर रहे एक एक कर,,
मेरी यादों का जाल बन रहा इनसे मिलकर।
◆राही बीते पलो को भूल आंगे बढ़ लिया,,
मंजिल हैआंगे सोच वो मुस्करा लिया।
◆समय की गाड़ी चली जा रही रफ्तार से,,
रेत भी फिसल जाती है मेरी मुट्ठी की किनार से।
◆खुशियों के लम्हे याद आते है बहुत,,
हमें आज भी इन्तेजार उनके आने का है बहुत।
◆ सांझ ढले आना तूम नदियाँ किनारे,,
मिल बैठ भूलिबिसरी बातें करेंगे हम दोनों प्यारे।
गायत्री सोनू जैन मंदसौर