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26 Oct 2021 · 10 min read

सहकारी युग का दसवाँ वर्ष 1968-69 : एक अध्ययन

सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक ,रामपुर ,उत्तर प्रदेश का दसवाँ वर्ष (1968 69 ) : एक अध्ययन
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समीक्षक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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सहकारी युग का वर्ष 1968-69 का प्रथम अंक अर्थात 15 अगस्त विशेषांक फाइल में उपलब्ध नहीं है ।
संगीत के क्षेत्र में रामपुर के महत्वपूर्ण योगदान को याद दिलाने के लिए सहकारी युग ने 26 अगस्त 1968 को अर्थात अंक 2 में लगभग सवा पेज का लंबा संपादकीय लिखा और उस युग की याद ताजा की जब ” मिर्जा गालिब को रामपुर से वजीफा मिलता था , दाग देहलवी और अमीर मीनाई रियासत रामपुर की मुलाजिमत में थे , महाकवि ग्वाल, महाकवि पंडित दत्त राम ,पंडित विधि चंद्र जैसे कवि पंडित तांत्रिक और ज्योतिषी रामपुर में चैन की जिंदगी बसर कर रहे थे और शाह सदारंग की पाँचवी पुश्त में सुर सिंगार – नवाज बहादुर हुसैन खान और उनके दामाद अमीर खां की तूती बोल रही थी ।”
पत्र ने रामपुर वालों को स्मरण कराया कि पंडित भातखंडे मरहूम और उस्ताद अलाउद्दीन खान इन दोनों की तालीम रामपुर में ही हुई। पत्र पूछता है कि कितने लोग इस हकीकत से वाकिफ हैं कि हंगरी, रूस और मंगोलिया में रामपुर का एक ब्राह्मण रामपुर के संगीत-संदेश को ले गया और वहां से कामयाब वापस लौटा। नाम स्पष्ट करते हुए पत्र ने फिर कहा कि ” आचार्य बृहस्पति को आज हिंदुस्तान और हिंदुस्तान से बाहर कौन नहीं जानता ?” सहकारी युग ने ठेठ उर्दू में खेद प्रकट किया कि “रामपुर की नई पौध इन हकायक से वाकिफ नहीं है। उसे अपनी उन रिवायत का इल्म ही नहीं है जिस पर वह बड़ा फख्र कर सकती है ।”
सूचना विभाग जो कि काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है को समाप्त करने के राज्य सरकार के निर्णय को सहकारी युग ने विकास की गति अवरुद्ध करने वाला तथा सुधार के द्वार बंद करने वाला बताया क्योंकि जिला स्तर पर सूचना विभागों का लोप करने के बाद जनता और प्रशासन के मध्य का संबंध प्रायः समाप्त हो गया है।( संपादकीय 31 अगस्त 1968 )
विपक्ष के समक्ष “देश से पहले पार्टी का प्रश्न है क्योंकि देश के समक्ष वाह्य और आंतरिक दोनों ही प्रकार के संकट अनदेखा कर यह पार्टियां केंद्रीय सरकार के अधीन सेवाओं पर 19 सितंबर की हड़ताल के लिए दबाव डालने की नीति पर उतारू हो गई हैं। विपक्ष की और भी आलोचना करते हुए सहकारी युग में आगे लिखा कि खेद यह है कि हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां सत्ता की ओर अधिक आकर्षित रहती हैं और कर्तव्य की और कम ।”(संपादकीय यह हड़ताल है या गद्दारी ,16 सितंबर 1968)
राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस जैसी पुरानी संस्था में आज “ताकत के लिए स्वार्थों का संघर्ष बरकरार है । दरारें पूर्ववत ही नहीं अपितु गहरी हैं और संस्था की कब्र खोदने के प्रयत्न जारी हैं। इतना ही नहीं रामपुर के मामले में तो एक कदम आगे बढ़कर यह कहना चाहिए कि यहां स्वतंत्रता के उपरांत कांग्रेस में जिस वर्ग के लोगों ने प्रवेश किया वह बेचारे सिद्धांत कम और दल तथा व्यक्ति-निष्ठ बहुत अधिक थे। (संपादकीय 22 अक्टूबर 1968)
रामपुर के सुप्रसिद्ध और प्रतिष्ठित समाज सेवी बाबू आनंद कुमार जैन एडवोकेट को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए सहकारी युग ने लिखा कि “बाबूजी वह हृदय और मस्तिष्क थे जिनमें प्यार और ज्ञान की सरिताएँ प्रवाहित होती थीं। जो भी साहित्यिक हृदय उनके पास गया ,वह उनका बन गया और जो मस्तिष्क उनके संपर्क में आए वह संकुचितता त्याग कर विशालता की ओर अग्रसर हुए । वकालत का पेशा करते हुए भी हमारे बाबूजी शुद्ध साहित्यिक चेतना के मालिक थे । हिंदी के कवियों और उर्दू के शायरों के वह भक्त थे तो कवि और शायर भी उन्हें देवता मानते थे ।”(संपादकीय 18 नवंबर 1968)
नवाब रामपुर मुर्तजा अली खाँ और राजमाता रफत जमानी बेगम का जब रामपुर नगर विधानसभा सीट पर टकराना तय हो गया तो सहकारी युग ने मूलभूत प्रश्न जनता के सम्मुख रखा कि इस संघर्ष में जनतंत्र और जनता का क्या कोई दखल है ? नवाब और राजमाता मैदान में हैं और मिकी राजमाता को लड़ा रहे हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि वह लोग जनता का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं जिनका जनता से कोई संबंध नहीं है । जनता और जनतंत्र का नारा बुलंद करने वाले बताएं कि वह इन तरीकों से रामपुर को कितना नीचे और ले जाना चाहते हैं ? रामपुर कांग्रेस के इतिहास पर सहकारी युग ने प्रसंग वश दृष्टिपात किया और पाया कि यहां कांग्रेस लक्ष्मी की चेरी बन कर रही है । जब तक लक्ष्मीपति के निवास से कांग्रेस का संबंध रहा है ,तब तक उनके खद्दर में स्वच्छता और कलफ दिखाई दिया है किंतु उसके बाद वह अजीब बुझे-बुझे से रहे हैं । “(संपादकीय 26 नवंबर 1968 )
चुनाव के माहौल में सहकारी युग ने जनता को परामर्श दिया कि वह मात्र नारों पर न जाकर उम्मीदवारों द्वारा जनसेवा का रिकॉर्ड देखें और जानें कि उनकी नजर में रामपुर की क्या समस्याएं हैं और वह उन्हें किस तरह हल करना चाहेंगे।” (संपादकीय 9 दिसंबर 1968 )
अगले अंक संपादकीय 16 दिसंबर 1968 को सहकारी युग में लिखा कि मिकी मियां ने राजमाता के समर्थन में कोई कार्यक्रम मतदाताओं के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया है बल्कि अपने बड़े भाई पर आरोप मात्र लगाए हैं । इसी तरह नवाब रामपुर द्वारा मांगे जाने वाले समर्थन के पीछे उनका व्यक्तित्व अधिक है ,कांग्रेस का कार्यक्रम और सिद्धांत कम । ”
रामपुर नगर के चुनावों के बहुकोणीय संघर्ष में सहकारी युग में निष्पक्षता और निर्भीकता पूर्वक चुनाव विश्लेषण प्रस्तुत किया । उसने साफ-साफ लिखा कि नवाब रामपुर मुर्तुजा अली खाँ जन- हित के लिए नहीं अपितु चुनाव जीतकर मात्र अपनी उस रियासती शान को एक बार पुनः हासिल करना चाहते हैं जो अब उनके पास नहीं है। इसीलिए वह अपने चुनाव में इतना अधिक रुपया खर्च करेंगे जिसकी मिसाल शायद हिंदुस्तान में न मिल सके । “परंतु पत्र ने खेद व्यक्त किया कि आज जब रियासती हुकूमत खत्म हो चुकी है और जब कि जनतंत्र का प्रादुर्भाव हुआ है यह बड़े लोग हमें जनतंत्र से दूर ले जा रहे हैं । ” इसी प्रकार श्री मिक्की मियां के समर्थन से राजमाता की उम्मीदवारी को पत्र ने रामपुर के हित का लक्ष्य दृष्टिगत रखते हुए मानने से इनकार किया और कहा कि उनकी यह क्षुद्र लड़ाई उसूलों या राजनीति की न होकर पारिवारिक रह गई ,जिसमें रामपुर की जनता शिकार बन कर रह गई है ।” एक अन्य उम्मीदवार जनसंघ के संबंध में पत्र ने अपने आकलन में साफ-साफ लिखा कि “हम समझते हैं कि जनसंघ को अपनी जमानत बचाना कठिन होगा ।”(संपादकीय 23 दिसंबर 1968)
सहकारी युग की दृष्टि में तो चुनाव एक राजनीतिक लड़ाई है जिसमें प्रतिद्वंदी अपनी अपनी पार्टी और अपने-अपने कार्यक्रम के आधार पर जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हैं । इस संघर्ष में कटुता नहीं होती । किंतु दुर्भाग्य है कि नवाब और राजमाता का चुनाव व्यक्तिगत मनमुटाव के आधार पर लड़ा जा रहा है और उसमें व्यक्तिगत मान-सम्मान का मसला बन रहा है । उपरोक्त के भाषणों और सभाओं का संबंध न तो देश से है और न रामपुर की समस्याओं से । भाषणकर्ता अत्यंत भावुक होकर नवाब रामपुर और राजमाता के पारिवारिक झगड़ों का उल्लेख करते हैं तथा जन भावनाओं को भड़का कर जनसमर्थन का प्रयास करते हैं ।” सहकारी युग ने उपरोक्त प्रवृत्ति को जनतंत्र की प्रगति के प्रश्न से असंगत महसूस किया । (संपादकीय 31 दिसंबर 1968 )
20 पृष्ठीय गणतंत्र दिवस विशेषांक में सहकारी युग ने उन विसंगतियों पर विस्तार पूर्वक विचार किया जिनसे कि गांधीजी के बाद के भारतीय राजनीतिक दलों ने सेवा कार्य में नियमित रूचि का प्रमाण देने के स्थान पर शासकीय अधिकारों को आकर्षक समझा “।(संपादकीय) इसी अंक के मुखपृष्ठ पर दरवाजे पर दस्तक देते चुनावों की बेला में सहकारी युग ने “किसे चुने ? “शीर्षक से लिखा “चुनाव में हमें अपना प्रतिनिधि चुनना होता है अर्थात अपने विचारों ,भावनाओं ,आवश्यकताओं और उनकी पूर्ति के निमित्त योजनाओं का प्रतीक तय करना होता है । अतः किसी धारा में बहकर अपने मत का प्रयोग करने के बजाय हृदय और मस्तिष्क के प्रयोग के बाद ही अपना प्रतिनिधि चुनें, जो चुनाव के पहले और चुनाव के बाद भी हमारा रहे।”
रामपुर नगर विधानसभा सीट से नवाब रामपुर की जीत को सहकारी युग ने नगरीय राजनीति का खास बाग से बाहर रहने के बाद फिर खास बाग में पहुंच जाना बताया और कहा कि अब वर्षानुवर्ष तक किसी भी साधारण व्यक्ति का चुनाव मैदान में उतरना संभावना होगा । पत्र ने जानना चाहा कि क्या नवाब रामपुर भविष्य में यह सिद्ध करेंगे कि वह खास बाग में स्थापित एक प्रतिमा न रहकर जनता के प्रतिनिधि हैं ?”(संपादकीय 12 फरवरी 1969 )
नवाब बनाम मिकी-राजमाता संघर्ष पर चुनावोपरांत सहकारी युग में फिर लिखा कि “व्यक्तिगत मामलों को लेकर रामपुर की डेढ़ लाख जनता के साथ खिलवाड़ करना एक जबरदस्त सामाजिक पाप है।” ( संपादकीय 20 फरवरी 1968)
राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के असामयिक देहावसान पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए पत्र ने मत व्यक्त किया कि “डॉक्टर हुसैन यद्यपि 2 वर्षों से भी कम इस पद पर विराजमान रहे किंतु उनकी कर्तव्य परायणता और समाज के हर अंग के लिए निष्ठा पूर्वक सेवा की भावना ने आज उन्हें अविस्मरणीय और अद्वितीय प्रतिष्ठा प्रदान की है । उनके जीवन का अधिकांश समय शिक्षा कार्य में व्यतीत हुआ । उनकी दृष्टि में शिक्षा के क्षेत्र रसायनशालाओं और कक्षाओं तक सीमित न रहकर राष्ट्रीय पुनरुत्थान की एक प्रक्रिया हैं।” ( सहकारी युग 5 मई 1970 )
उपरोक्त अंक में ही अपने संपादकीय में पत्र ने स्थानीय रजा डिग्री कॉलेज में छात्र अनुशासनहीनता तथा शुद्ध राजनीतिक हस्तक्षेप की निंदा करते हुए सबसे संयम और शालीनता बरतने का आग्रह किया । पत्र के अनुसार कालेज में “किन्ही अपरिपक्व राजनीतिक प्रभावों के फलस्वरुप अत्यंत अशिष्ट अभद्र तत्व आज अध्यापक वर्ग की इज्जत उछाल रहे हैं । ” पत्र ने ऊंची आवाज और तीखे तेवर के साथ उपरोक्त असामाजिक तत्वों को चुनौती दी कि “जिस शहर ने सभ्यता और संस्कृति तहजीब और तमद्दुन को संरक्षण दिया ,आज कुछ कथित शोहदे, हमारे बुजुर्गों की उस मेहनत पर कीचड़ उछाल कर उन ऊँची हस्तियों का नामोनिशान मिटा देना चाहते हैं ।” (5 मई 1969 )
सहकारी युग द्वारा 5 मई के उपरोक्त संपादकीय में जीवन और मृत्यु के मध्य समय व्यतीत करने वाले अध्यापकों की सुरक्षा व सम्मान की मांग पर प्रतिक्रिया यह हुई कि 7 मई की रात को सहकारी युग कार्यालय में घुसकर रजा डिग्री कॉलेज के एक उद्दंड छात्र द्वारा सहकारी युग के संपादक को कृत्य की धमकी दी गई। इस कृत्य की निंदा कांग्रेस के वरिष्ठ स्तंभ पंडित केशव दत्त और देवीदयाल गर्ग सहित नवाबजादा सैयद जुल्फिकार अली खान और नवाब रामपुर ने भी की । कहने का तात्पर्य यह है कि अभिव्यक्ति के खतरे उठाकर भी सहकारी युग ने खरी-खरी बात कहने में कभी परहेज नहीं किया । अपने जीवन को संकट में डाल कर भी पत्र ने अध्यापक वर्ग की अस्मिता की रक्षा के लिए प्राण-प्रण से लेखनी का दायित्व मिशनरी भावना से निभाया । अपनी जान खतरे में डालकर भी पत्र ने बार-बार यही लिखा कि 5 मई का उसका संपादकीय उन तत्वों की निंदा थी जो गौ समान गुरुवर के लिए कसाई सिद्ध हो रहे थे ।पत्र के अनुसार उसने बहुत सोच समझकर ऐसे तत्वों को शोहदा और बेहूदा कहा था । पत्र की मान्यता तो यह थी कि गुरु का स्थान तो गौ माता से भी अधिक पवित्र है क्योंकि गुरु की शिक्षा से व्यक्ति एक सुशिक्षित समाज में जीवन यापन करने का अधिकारी बनता है । इसीलिए पत्र संकल्प पूर्वक वचन देता है कि “गुरु वर्ग और बहनों तथा कानून और व्यवस्था के सम्मान की रक्षा में वह अपने रक्त की अंतिम बूंद तक समर्पित करने में संकोच नहीं करेगा।”( संपादकीय 10 मई 1969)
निर्भीकता पूर्वक स्वतंत्र विचारधारा और साहसिक लेखनी का परिचय देने पर सहकारी युग के संपादक को जो अभद्र व्यवहार रजा डिग्री कॉलेज के छात्र की ओर से खेलना पड़ा ,पत्र के अनेक पाठकों यथा कविवर भारत भूषण मेरठ ,विजय कुमार टनकपुर ,उमाकांत दीप ,महेंद्र वर्मा अध्यापक पंतनगर विश्वविद्यालय ने उसकी कड़ी भर्त्सना की । (पाठकों के पत्र 20 मई 1969 ) उपरोक्त पाठकों ने प्रेस की स्वतंत्रता तथा पत्रकारिता के कठिन दायित्वों का स्मरण करते हुए सहकारी युग द्वारा निर्भयता पूर्वक पत्रकारिता के पावन कर्तव्य को निभाना तथा अन्याय ,असत्य और अनाचार का प्रतिकार करने की सहकारी युग की आस्था और सिद्धांत की रक्षा के लिए सारे भारत के साहित्यकारों – बुद्धिजीवियों द्वारा पत्र के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सक्रिय सहयोग देने का आश्वासन दिया ।
नगरपालिका का दायित्व सहकारी युग की दृष्टि में स्वास्थ्य ,यातायात ,शिक्षा आदि सुविधाएं देना होता है ,जिसकी उपलब्धि के लिए ही नागरिक अपने प्रतिनिधि पालिका हेतु चुनते हैं । परंतु पत्र को खेद है कि रामपुर नगर पालिका के अधिकांश सदस्यों ने सेवा भावना का अवलंबन करने के बजाय दलगत या व्यक्तिगत स्वार्थों को ही सामने रखा ।”(संपादकीय 18 जून 1969 )
इतना ही नहीं मात्र 1 घंटे की वर्षा में रामपुर के कई मुख्य मार्गों पर लगभग 2 फुट तक पानी भर जाता है। रामपुर की सड़कों पर फैली गंदगी पत्र को व्यथित कर देती है। वह कह उठता है कि दुर्भाग्य है रामपुर का जहां जनता अपने हित-अहित का सही अनुमान लगाए बिना ही अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव करती है और इस तरह कुछ राजनीतिक नारों का शिकार बनती है।”( संपादकीय 5 जुलाई 1969 )
सहकारी युग राजनीतिक निष्पक्षता और चुनावों की क्षुद्र उठापटक से ऊपर उठकर उम्मीदवारों तथा पार्टियों की कार्यवाहियों के संबंध में स्पष्ट विचार इस वर्ष प्रकट करता रहा । जहां उसने जनसंघ उम्मीदवार की पराजय की पूर्व घोषणा की और जनसंघ के अभियान को निस्तेज अनुभव किया ,वहीं दूसरी ओर नवाब-नवाबजादा- राजमाता की त्रिमूर्ति में भी किसी तेजस्विता का अनुभव करने से स्पष्ट इनकार किया। पत्र एक आदर्श जनप्रतिनिधि की खोज की अपनी कल्पना सृष्टि में निरंतर विचरण करता रहा जो संसद विधानसभा से लेकर नगरपालिका स्तर पर भी विद्यमान थी । अपनी लेखनी से साहसिक समीक्षा के लिए उद्दंड छात्र द्वारा कत्ल की धमकी तक इस साल तो पत्र को मिल गई मगर इसने जान की बाजी लगाकर भी अपने नियत कर्तव्य पथ से विचलित होना स्वीकार नहीं किया । भले ही कितने शक्तिशाली हाथ सहकारी युग के विरुद्ध कार्यरत शक्तियों को सहायता देने के लिए तैयार हों। एक अखबार की असली कसौटी समय आने पर निर्भीकता निष्पक्षता का प्रमाण दे पाना होता है । उसे अपने आचरण द्वारा अपनी निरपेक्ष विचारधारा सिद्ध करनी होती है । मात्र लेख में अथवा नारे के बतौर खुद को निष्पक्ष तो कोई भी कह सकता है। सहकारी युग का अक्षर-अक्षर उसकी निष्पक्षता की गवाही सारे साल की फाइल पर दे रहा है । निस्संदेह पत्र की उर्जा की पवित्रता की दृष्टि से यह एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर दर्ज की जानी चाहिए ।
साहित्य-विचार संसार को सहकारी युग ने वर्ष भर समृद्ध किया । अनेक कहानियां ,कविताएं, लेख आदि इस वर्ष प्रकाशित हुए। इस वर्ष के रचनाकार हैं : उमाकांत दीप ,शैलेंद्र सागर ,ओमप्रकाश भारतीय ,अमर , कुमार विजयी ,नवनीत कुमार जैन, रामावतार कश्यप पंकज ,क्षितीश ,ठाकुर प्रसाद सिंह ,महेश राही, देवर्षि सनाढ्य (गोरखपुर विश्वविद्यालय हिंदी विभागाध्यक्ष ),डॉ कृपाल नाथ श्रीवास्तव डी.लिट ,कल्याण कुमार जैन शशि, मुन्नू लाल शर्मा, डॉक्टर बैजनाथ गिगरस ,अंशुमाली ,श्रीकृष्ण राकेश ,अभय फर्रुखाबादी (रामपुर ),डॉ स्वर्ण किरण (पटना ),जयदयाल डालमिया, बी.एल. जुवाँठा “प्रेमी”। मुख्य रूप से इस वर्ष कुमार विजयी और उमाकांत दीप अपनी अनेक सुंदर कविताओं की निरंतरता के साथ सहकारी युग को वर्ष भर आभावान बनाते रहे।।

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