Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Jan 2022 · 10 min read

संस्मरण:भगवान स्वरूप सक्सेना “मुसाफिर”

संस्मरण

आवाज के जादूगर श्री भगवान स्वरूप सक्सेना “मुसाफिर” (जन्म : बरेली ,उत्तर प्रदेश , 31 मार्च 1924)

श्री भगवान स्वरूप सक्सेना “मुसाफिर” (कुंडलिया)

भारी भरकम गूँजती ,जिनकी थी आवाज
जैसे कोई बज रहा , वीर-वृत्ति का साज
वीर-वृत्ति का साज ,निपुण संचालन-कर्ता
अधिकारी विद्वान , बंधु साथी दुखहर्ता
कहते रवि कविराय , घूमते दुनिया सारी
श्री भगवान स्वरूप , एक थे सौ पर भारी

पूज्य पिताजी स्वर्गीय श्री राम प्रकाश सर्राफ की जिन गिने-चुने सरकारी अधिकारियों से घनिष्ठता रही ,श्री भगवान स्वरूप सक्सेना “मुसाफिर” उनमें से एक थे। बचपन से आपके दर्शनों का सौभाग्य मुझे मिलता रहा । आप प्रायः दुकान पर आते थे। पिताजी के पास बैठते थे और काफी देर तक बातचीत होती रहती थी । मैं थोड़ी दूर बैठा एक श्रोता की तरह दृश्य का अवलोकन करता रहता था ।
ज्यादातर आपके साथ आपकी माता जी अवश्य आती थीं। माताजी दुबली- पतली शरीर की ,सफेद साड़ी पहने हुए ,सिर पर पल्ला ढके हुए ,अत्यंत सरल ,सादगी में रची – बसी तथा आत्मीयता भाव से भरी रहती थीं। जब माताजी आती थीं, तब आपका घर पर आगमन अवश्य होता था। कई बार जल्दी में दुकान से भी मिलकर आप चले जाते थे ।
आपकी आयु पिताजी के ही समान थी तथा आपकी घनिष्ठता एक तरह से मित्रता में बदल रही थी । खास बात यह थी कि आप में मर्यादा-बोध बहुत अच्छा था तथा पचासियों बार मेरा आपसे मिलना हुआ लेकिन कभी भी एक शब्द भी मर्यादा के बाहर जाकर मैंने आपको कहते हुए नहीं सुना । संसार में जब व्यक्ति रहता है तो सकारात्मक के साथ-साथ कुछ नकारात्मक प्रवृत्तियों पर भी टिप्पणी करता ही है । लेकिन विपरीत टिप्पणी करते समय भी मर्यादा का ध्यान रखना तथा शब्दों का सभ्यता पूर्वक चयन करना ,यह साधना बिरले लोग ही कर पाते हैं । आप उनमें से एक थे और इसीलिए आप की पटरी पूज्य पिताजी के साथ अच्छी बैठती थी ।

दिनेश जी के प्रवचनों में मंच की शोभा बढ़ाई

रामपुर में 1956 से 1972 तक प्रारंभ में सुंदर लाल इंटर कॉलेज तथा बाद में टैगोर शिशु निकेतन के प्रांगण में श्री दीनानाथ दिनेश जी के गीता पर प्रवचन पिताजी आयोजित करते थे। इन प्रवचनों में मंच पर अध्यक्षता के लिए श्री भगवान स्वरूप सक्सेना जी की उपस्थिति एक परिपाटी-सी बन गई थी । सक्सेना साहब को गीता का अच्छा ज्ञान था और एक साहित्यकार होने के कारण सामाजिक परिदृश्य और शब्दावली पर उनकी अच्छी पकड़ थी। उनकी सबसे प्रमुख विशेषता उनकी भारी-भरकम आवाज थी । जब मैं उन्हें याद करता हूँ, तो प्रमुख रूप से उनकी आवाज मेरे कानों में गूँजती है । दिनेश जी की आवाज बारीक थी लेकिन श्री भगवान स्वरूप सक्सेना जी की आवाज बहुत भारी-भरकम थी। उस भारी-भरकम आवाज में एक विशिष्ट साज बजता हुआ प्रतीत होता था। अर्थात एक प्रकार की खनक उसमें गूँजती थी और व्यक्ति उसकी तरफ खिंचा चला जाता था । मैंने ऐसी आवाज दूसरी नहीं सुनी । वह आवाज अभी भी कानों में गूँजती है । उसमें भारी – भरकमपन होते हुए भी एक मधुरता थी । दिनेश जी के प्रवचन के मंच पर भगवान स्वरूप सक्सेना जी का अध्यक्षीय भाषण भी अपने आप में एक आकर्षण रहता था ।
आपका व्यक्तित्व प्रभावशाली था । शरीर थोड़ा भारी था । धीरे चलने का स्वभाव था । रंग गहरा साँवला था । बड़े काले फ्रेम का मोटा चश्मा मैंने हमेशा उन्हें लगाए हुए देखा । कुल मिलाकर एक गंभीर व्यक्तित्व की छाप मुझ पर पड़ती थी।
समारोह के संचालन की भी आपकी क्षमता बेजोड़ थी । तत्काल भाषण देना, टिप्पणी करना तथा प्रतिक्रिया व्यक्त कर देना आपके बाँए हाथ का खेल था । न केवल दिनेश जी के प्रवचनों में आपका अध्यक्षीय भाषण अपनी छाप छोड़ता था अपितु अनेक अवसरों पर आपकी वाणी सभी को मुग्ध करने वाली होती थी ।

रामपुर में काका हाथरसी नाइट तथा अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का संचालन

8 – 9 फरवरी 1981 को सुंदर लाल इंटर कॉलेज का रजत जयंती समारोह दो दिवसीय मनाने का जब पिताजी ने निश्चय किया तब पहला दिन काका हाथरसी -नाइट का रखा तथा दूसरा दिन अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का था । रामपुर में काका हाथरसी नाइट का आयोजन हो, यह पिताजी की प्रबल इच्छा थी । इसका संचालन श्री भगवान स्वरूप सक्सेना करें, यह हार्दिक कामना भी पिताजी की थी । अतः श्री भगवान स्वरूप सक्सेना जी से संपर्क करके उनकी राय से तारीख तय की गई ताकि वह संचालन के लिए उपलब्ध हो सकें। 8 फरवरी को पहले दिन काका हाथरसी नाइट हुई तथा अगले दिन 9 फरवरी 1981 को देश के जाने – माने कवियों का कवि सम्मेलन विद्यालय प्रांगण में आयोजित हुआ । श्री भगवान स्वरूप सक्सेना के संचालन ने आयोजन को चार चाँद लगा दिए । जैसा सोचा था ,परिणाम वैसा ही निकला । कार्यक्रम सफल रहा। इसका काफी कुछ श्रेय संचालक श्री भगवान स्वरूप सक्सेना को जाता है । किसी भी कार्यक्रम में अगर अच्छा संचालन मिल जाए तो सफलता की गारंटी प्राप्त हो जाती है।

पंद्रह कालजयी शब्द – चित्रों की पुस्तक “नर्तकी”

1975 में श्री भगवान स्वरूप सक्सेना की पुस्तक “नर्तकी” प्रकाशित हुई थी । भेंट तो उन्होंने यह पुस्तक पूज्य पिताजी को की होगी लेकिन उसका एक – एक प्रष्ठ उस समय भी मैंने पढ़ा था और फिर अपने पास ही निजी अलमारी में रख लिया था । इस प्रकार वह मेरे पास 1975 से ही सुरक्षित है । नर्तकी की साज-सज्जा 1975 की दृष्टि से तो असाधारण ही थी। किताबों पर रंगीन कवर आज भी बड़ी मुश्किल से हो पाते हैं, 1975 में तो यह दुर्लभ ही होते थे । मोटा- चिकना कागज और शानदार छपाई मेरे मन को मोह गई थी । पद्मभूषण भगवती चरण वर्मा जी की भूमिका ने पुस्तक के महत्व पर एक मोहर लगा दी थी । 15 शब्द चित्र नर्तकी में सक्सेना साहब ने लिखे थे । यह एक प्रकार की कविता थी तथा इसे गद्य में लिखी गई कविता कहा जा सकता है ।पुस्तक में अनेक प्रकार से अपने विचारों को सक्सेना साहब ने अभिव्यक्ति दी थी ।
एक तरफ “शरीफ” और “देवता” नामक शब्द चित्र हैं ,जिसमें समाज में सफेदपोश लोगों के काले कारनामों को भयावहता के साथ चित्रित किया गया था तथा दूसरी ओर “सैनिक” जैसा शब्द चित्र था, जिसमें देश के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने की भावना मुखरित हो रही थी । नर्तकी, मंजिल, जीवन- यात्रा ,बीते दिन ,अंतिम निर्णय ,बुझे दीप ,दोषी कौन ,प्रतीक्षा, पगला या वियोगी –यह कुछ ऐसे शब्द चित्र हैं जिसमें एक टूटे हुए ,थके – हारे तथा निराश प्रेमी के हृदय की वेदना प्रकट हुई है । कलम के धनी लेखकों की प्रायः दृष्टि इस विसंगति की ओर जाती है तथा श्रंगार के वियोग पक्ष का चित्रण वह करते रहे हैं । श्री भगवान स्वरूप सक्सेना की लेखनी भी अपनी कलात्मकता के साथ इसी वियोग की पीड़ा का चित्रण करने की ओर प्रवृत्त हुई। सफलतापूर्वक आपने एक प्रेमी के टूटे हुए ह्रदय की कराह अपनी लेखनी के माध्यम से सबके सामन हृदय को छू लेने वाली मार्मिकता के साथ व्यक्त की ।
शब्द – चित्र तो अपनी जगह महत्वपूर्ण हैं ही ,लेकिन उनसे पहले जो दो- चार पंक्तियां श्री भगवान स्वरूप सक्सेना ने विषय पर लिखी थीं, वह अपनी प्रवाहमयता के कारण मुझे उस समय जैसे रट गयी हों। मैंने उस समय उन्हें अनेक बार मन ही मन गुनगुनाया था । हिंदी के शब्द चित्रों के शीर्षक में उर्दू के काव्य का तालमेल उसी गंगा – जमुनी कवि सम्मेलन व मुशायरे का माहौल बना रहा था ,जिसके संचालन के लिए श्री भगवान स्वरूप सक्सेना प्रसिद्ध थे। कुछ ऐसी ही काव्य पंक्तियों का रसास्वादन कीजिए:-
°°°°°°°°°°°°°°°°°
माँ
°°°°°°°°°°°°°°°°
मेहरो – उल्फत का शाहकार है माँ
गुलशने जीस्त में बहार है माँ
जो जमाने में मिल नहीं सकता
ऐसा अनमोल एक प्यार है माँ
उल्फत = प्रेम
शाहकार = सर्वोत्तम कृति
ज़ीस्त = जीवन
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
नर्तकी शब्द चित्र के शीर्षक के साथ आपकी चार पंक्तियाँ कितनी मार्मिक हैं तथा समाज से उपेक्षित तथा ठुकराई जाने वाली जिंदगियों के बारे में सोचने को विवश कर देती हैं। जिसे समाज ने ठुकरा दिया ,उसी में अनमोल गुणों के दर्शन लेखक ने किए । यह गुण ग्राहकता अथवा गुणों की परख ही किसी लेखक की कला को मूल्यवान बनाती है :-
कितनी पाकीजा है उसकी जिंदगी
जिसकी किस्मत में लिखी है तीरगी
है फरिश्तों से मुझे ज्यादा अजीज
वक्त के हाथों बनी जो नर्तकी
तीरगी = अँधेरा
°°°°°°°°°°°°°°°°°
सैनिक शब्द चित्र का आरंभ चार पंक्तियों से श्री भगवान स्वरूप सक्सेना ने किया है जिनकी भाव प्रवणता तथा संवेदनशीलता देखते ही बनती है :-
वह आ रहे हैं जामे शहादत पिए हुए
मरने की अपने दिल में तमन्ना लिए हुए
सैनिक चले हैं फिर नई सज-धज के साथ-साथ
कूजे में दिल के अपने समंदर लिए हुए
कूजे = कुल्हड़
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

अभिनंदन पुस्तिका

रिटायरमेंट के पश्चात 1982 के आसपास आपकी एक अभिनंदन पुस्तिका भी प्रकाशित हुई ,जो आप के संबंध में विभिन्न संस्थाओं ,समाचार पत्रों- पत्रिकाओं तथा विद्वानों की अभिव्यक्ति का संग्रह है । इनमें से यही बात निकल कर आ रही थी कि हर व्यक्ति आपकी समारोह संचालन की कला का प्रशंसक था और आपको इस नाते बहुत आदर तथा आश्चर्य की दृष्टि से देखता था ।
आपका जन्म 31 मार्च 1924 को बरेली (उत्तर प्रदेश) में हुआ था । आप रामपुर में जिला सूचना अधिकारी के पद पर अनेक वर्षों तक रहे । आपने मुरादाबाद, पीलीभीत तथा शाहजहाँपुर जनपदों में भी जिला सूचना अधिकारी के तौर पर काम किया है । पत्रकारों से आपका संपर्क होना स्वाभाविक था। सभी आपके प्रशंसक रहे। संपर्क बनाने तथा सबको अपने मधुर स्वभाव की विशेषता से मुग्ध कर देने की कला आपको बखूबी आती थी । आप जहाँ गए , ढेरों प्रशंसक बनाते गए । सरकारी अधिकारी के तौर पर आप उत्तर प्रदेश में लॉटरी निदेशालय के उप – निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे ।आपकी काव्य कला ,समारोह संचालन की अद्भुत क्षमता तथा विद्वत्ता की प्रशंसा सर्वश्री राष्ट्रकवि पंडित सोहनलाल द्विवेदी ,गोपालदास नीरज ,अमृतलाल नागर ,निरंकार देव सेवक, भगवती चरण वर्मा आदि ख्याति प्राप्त लेखनी के धनी व्यक्तियों ने की है।
मैंने स्वयं इस बात को महसूस किया है कि आपका वास्तव में अपनी माँ के प्रति बहुत प्रेम था। “नर्तकी” पुस्तक आपने अपनी माँ को ही समर्पित की थी । माँ के संबंध में इस पुस्तक को समर्पित करते समय जो हृदय के उद्गार थे ,वह आपने अपनी “अभिनंदन पुस्तिका” में काव्यात्मकता के साथ इस प्रकार अभिव्यक्त किए थे:-
जिसके विमल प्रेम ने भावों में करुणा सरसाई
प्रति अक्षर के साथ मनोरम प्रतिमा सम्मुख आई
जो कुछ मैंने लिखा ,स्वयं मैं जिसके तप का व्रत हूँ
उसके श्री चरणों में तन मन धन से मैं अर्पित हूँ

श्री भगवान स्वरूप सक्सेना के तीन पत्र

मेरा यह सौभाग्य रहा कि जब मैंने 1982 में अपनी पहली पुस्तक “ट्रस्टीशिप विचार ” लिखी, तब उसके संबंध में श्री भगवान स्वरूप सक्सेना जी का प्रोत्साहन से भरा पत्र मुझे प्राप्त हुआ । दो और पत्र भी मेरे संग्रह में आपके लिखे हुए हैं ,जो मेरी पुस्तकों के प्रति आपके आशीर्वाद की अमूल्य निधि बन गए हैं।
श्री भगवान स्वरूप सक्सेना जी के तीन पत्र इस प्रकार हैं:-

(1) कहानी संग्रह “रवि की कहानियाँ” के संबंध में

भगवान स्वरूप सक्सेना “मुसाफिर”
कमल कुटीर
ब्लंट स्क्वायर ,लखनऊ
रवि की कहानियाँ
देवकीनंदन खत्री जी के बहुचर्चित उपन्यासों की समीक्षा करते हुए आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा था -“प्रसंग और परिवेश कुछ भी हो ,वकील की दृष्टि कहती है न्याय की खोज में दौड़ते रहो।” यही सत्य है ,रवि की कहानियों के विषय में । प्रबुद्ध संवेदनशील संस्पर्शी रचनाधर्मी होने के साथ रवि कानून के ज्ञाता हैं ,इसीलिए न्याय के पक्षधर ।
कहानी कोई भी हो ,चाहे मुर्गा ,कायर या दान का हिसाब – -सभी के पात्र अपने अपने ढंग से न्याय के लिए जूझ रहे हैं । विद्वान लेखक की लेखनी उन्हें न्याय दिलाती भी है। देर – सवेर की बात दूसरी है । रवि की इन कहानियों में आज के जीवन की आपाधापी और चक्रव्यूह हैं । पात्र आपके आसपास के और दैनिक प्रसंगों में फँसे हुए हैं ,पर उनमें अवसाद नहीं ,अपनी ताजगी है । उनमें भावनाएं जोर शोर के साथ कर्म क्षेत्र में उतरी हैं । इसीलिए उन में स्वाभाविकता है। सजगता भी ।
कथाकार की अपनी भाषा है अपनी अभिव्यक्ति । उसकी शैली कहीं तथ्यात्मक है ,कहीं कथनात्मक। दोनों ही परिस्थितियों में उसमें कथा का रोमांच और पात्रों की मानसिकता का चित्रण । रवि बड़ज्ञ हैं,बहविद् । कथा उनकी रचना धर्मिता का एक पक्ष है । पर काफी समर्थ। साधना के सोपान इन्हें ऊपर उठाएँगे ।उनके हर शब्द मानो आश्वासन दे रहे हैं कि कथाकार का अपना भविष्य है, जिसे वह साकार करेगा । अवश्य.. अवश्य
दिनांक 11 अप्रैल 1990
भगवान स्वरूप सक्सेना “मुसाफिर”

(2) “माँ ” काव्य संग्रह के संबंध में
भगवान स्वरूप सक्सेना
फोन 50756
कमल कुटीर
ब्लंट स्क्वायर
लखनऊ
14 अक्टूबर 1993
प्रिय रवि
माँ पुस्तक भेजने के लिए धन्यवाद ,जिसे मैंने प्रसन्नता पूर्वक प्राप्त किया है । कहने की आवश्यकता नहीं है कि तुमने एक अच्छी पुस्तक लिखी है जिसमें एक माँ के सच्चे गुणों का दर्शाया गया है । माँ इस दुनिया में सर्वाधिक मूल्यवान वस्तु है । वह एक अद्भुत व्यक्तित्व है ,जिसकी प्रशंसा हर व्यक्ति करना चाहेगा। क्योंकि मैंने अपनी मूल्यवान माँ को खो दिया है ,अतः मैं ही जानता हूँ कि उसके वियोग की वेदना कितनी कष्टमयी और मूल्यवान होती है तथा जीवन के विविध अवसरों पर वह कमी खलती है ।
तुम्हारी माता जी एक महान आत्मा थीं और मैंने उनके सद्गुणों को निकट से देखा था।
जहाँ तक तुम्हारी पुस्तक की विशेषताओं का संबंध है ,मेरे पास ठीक-ठीक शब्द नहीं हैं, कि मैं उनकी प्रशंसा कर सकूँ। तुम्हारे पास एक अच्छी लेखनी है और तुम गद्य और पद्य दोनों में अच्छा लिख पाते हो । तुम्हारी कविताएँ तुम्हारी महान माँ के प्रति तुम्हारे प्रेम लगाव और श्रद्धा को व्यक्त करती हैं । शब्दों का चयन सुंदर है । कुल मिलाकर पुस्तक प्रशंसनीय है और साहित्यिक संसार में अक्षय स्थान लेगी । मेरी कामना है कि तुम हिंदी जगत को लंबे समय तक अपनी सेवाएँ दो ।तुम्हारे प्रति मेरी शुभकामनाएँ।
दीपावली की शुभकामना भी ।
अपने पिताजी से मेरा प्रणाम कहना । तुम्हारा : भगवान स्वरूप सक्सेना
नोट : मैं इस पत्र को हिंदी के स्थान पर अंग्रेजी में टाइप करने के लिए क्षमा चाहता हूँ।

(3) ट्रस्टीशिप विचार पुस्तक के संबंध में
बी .एस .सक्सेना
डिप्टी डायरेक्टर (रिटायर्ड)
यूपी स्टेट लाटरीज
निवास : कमल कुटीर ,ब्लंट स्क्वायर, लखनऊ 22 6001
फोन 50 756
लखनऊ 12- 1- 83
प्रिय रवि ,
आप द्वारा लिखित “ट्रस्टीशिप विचार” पुस्तिका प्राप्त हुई । पुस्तक के भेजने के लिए धन्यवाद।
मैं आपको इतनी सुंदर और ज्ञानवर्धक पुस्तक लिखने पर हार्दिक बधाई देता हूँ।
सेवानिवृत्ति के अवसर पर जो विदाई सम्मान दिया गया ,उस संबंध में प्रकाशित एक पुस्तिका भी आपको संलग्न कर भेज रहा हूँ ।
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित
भवनिष्ठ : भगवान स्वरूप सक्सेना
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

544 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
*ये रिश्ते ,रिश्ते न रहे इम्तहान हो गए हैं*
*ये रिश्ते ,रिश्ते न रहे इम्तहान हो गए हैं*
Shashi kala vyas
चन्दा लिए हुए नहीं,
चन्दा लिए हुए नहीं,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
"अकेडमी वाला इश्क़"
Lohit Tamta
फितरत ना बदल सका
फितरत ना बदल सका
goutam shaw
स्वागत हे ऋतुराज (कुंडलिया)
स्वागत हे ऋतुराज (कुंडलिया)
Ravi Prakash
अब मत करो ये Pyar और respect की बातें,
अब मत करो ये Pyar और respect की बातें,
Vishal babu (vishu)
"तलबगार"
Dr. Kishan tandon kranti
Time Travel: Myth or Reality?
Time Travel: Myth or Reality?
Shyam Sundar Subramanian
ज़िंदगी में गीत खुशियों के ही गाना दोस्तो
ज़िंदगी में गीत खुशियों के ही गाना दोस्तो
Dr. Alpana Suhasini
जो खास है जीवन में उसे आम ना करो।
जो खास है जीवन में उसे आम ना करो।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
बच्चे बूढ़े और जवानों में
बच्चे बूढ़े और जवानों में
विशाल शुक्ल
शुभ प्रभात मित्रो !
शुभ प्रभात मित्रो !
Mahesh Jain 'Jyoti'
"ना अपना निर्णय कोई<
*Author प्रणय प्रभात*
काशी
काशी
डॉ०छोटेलाल सिंह 'मनमीत'
तुम ख्वाब हो।
तुम ख्वाब हो।
Taj Mohammad
धूमिल होती पत्रकारिता
धूमिल होती पत्रकारिता
अरशद रसूल बदायूंनी
मुहब्बत
मुहब्बत
Dr. Upasana Pandey
जब स्वार्थ अदब का कंबल ओढ़ कर आता है तो उसमें प्रेम की गरमाह
जब स्वार्थ अदब का कंबल ओढ़ कर आता है तो उसमें प्रेम की गरमाह
Lokesh Singh
2981.*पूर्णिका*
2981.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
नींद
नींद
Kanchan Khanna
कभी वैरागी ज़हन, हर पड़ाव से विरक्त किया करती है।
कभी वैरागी ज़हन, हर पड़ाव से विरक्त किया करती है।
Manisha Manjari
उम्मीद कभी तू ऐसी मत करना
उम्मीद कभी तू ऐसी मत करना
gurudeenverma198
रमेशराज के 'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में 7 बालगीत
रमेशराज के 'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में 7 बालगीत
कवि रमेशराज
दोहे-
दोहे-
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
याद हो बस तुझे
याद हो बस तुझे
Dr fauzia Naseem shad
सफलता
सफलता
Dr. Pradeep Kumar Sharma
अब तो रिहा कर दो अपने ख्यालों
अब तो रिहा कर दो अपने ख्यालों
शेखर सिंह
तुम याद आये !
तुम याद आये !
Ramswaroop Dinkar
थर्मामीटर / मुसाफ़िर बैठा
थर्मामीटर / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
हिन्दी के हित
हिन्दी के हित
surenderpal vaidya
Loading...