Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Feb 2019 · 2 min read

श्रृंगार

श्रृंगार शब्द सुनते ही मुझे एक कहानी याद आ जाती है। वो कहानी मेरी बड़ी बहन की है। तो चलिए सुनते है वो हंसीदार बचपन का श्रृंगार। एक दिन मम्मी मेरी दीदी को नीचे छोड़ कर कपड़े सूखाने छत पर चली गयी। मेरी बहन को शायद हनुमान जी कुछ ज्यादा ही पसंद थे। वो पता नहीं कैसे अलमारी पे चढ़ गयी। वहाँ पर मम्मी ने सिन्दूर का बड़ा सा एक डब्बा रखा था। दीदी ने डिब्बा खोला और अपने उपर उझल लिया।और फिर मम्मी के सारे मेकअप किट का तो कबाड़ा ही निकाल दिया। और फिर सारे डिब्बे एक-एक कर के जमीन पर फेकना शुरु कर दिया। मम्मी ने जोड़ों की आवाज़ सुनी तो घबरा गयी। वों दौरी-दौरी निचे आयी। और दीदी की कारिस्तानी देख के गुस्से वाला मुँह बना और फिर पापा को बुलाया। दीदी डर गयी। उसे लगा की अब उसे मार पड़ने वाली है। पापा के आते ही दीदी ने रोनू जैसा मुँह बना लिया। पापा और मम्मी तभी ठहाके लगा के हँसने लगे। दीदी भी अपनी प्यारी सी आवाज़ में हँसने लगी। मम्मी ने उसे गोदी में उठाया और कहा ‘ लगता है बड़े होकर मेकअप ये बड़े चाओ से करेगी।’ आज मेरी बहन दसमीं में पढ़ती है। उसे मेकअप का तो बिलकुल भी शौख नहीं है। और जब भी मम्मी हमें ये कहानी सुनाती है। मैं तो बहुत हस्ती हूँ और उसे खूब चिढ़ाती हूँ। दीदी भी हसती है और मुझपे तब बहुत गुस्सा होती है। वैसे आपको एक मजेदार बात बताना तो मैं भूल गयी। मैंने बचपन में ऐसा कोई काम नहीं किया मगर मुझे मेकअप का बहुत शौख है। पर मेरी बहन ने बचपन में कई बार ऐसा किया है। एक बार तो उसने आटे से ही भूत जैसा मेकअप किया था। मगर उसे मेकअप का बिलकुल शौख नहीं है।
-वेधा सिंह
-कक्षा -पांचवीं

Language: Hindi
942 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
गाछ (लोकमैथिली हाइकु)
गाछ (लोकमैथिली हाइकु)
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
फागुनी है हवा
फागुनी है हवा
surenderpal vaidya
बिन मांगे ही खुदा ने भरपूर दिया है
बिन मांगे ही खुदा ने भरपूर दिया है
हरवंश हृदय
तुम तो मुठ्ठी भर हो, तुम्हारा क्या, हम 140 करोड़ भारतीयों का भाग्य उलझ जाएगा
तुम तो मुठ्ठी भर हो, तुम्हारा क्या, हम 140 करोड़ भारतीयों का भाग्य उलझ जाएगा
Anand Kumar
मन
मन
Sûrëkhâ Rãthí
6) जाने क्यों
6) जाने क्यों
पूनम झा 'प्रथमा'
* चली रे चली *
* चली रे चली *
DR ARUN KUMAR SHASTRI
■ सीढ़ी और पुरानी पीढ़ी...
■ सीढ़ी और पुरानी पीढ़ी...
*Author प्रणय प्रभात*
***
*** " पापा जी उन्हें भी कुछ समझाओ न...! " ***
VEDANTA PATEL
तुमसे ही दिन मेरा तुम्ही से होती रात है,
तुमसे ही दिन मेरा तुम्ही से होती रात है,
AVINASH (Avi...) MEHRA
बस हौसला करके चलना
बस हौसला करके चलना
SATPAL CHAUHAN
यह मेरी इच्छा है
यह मेरी इच्छा है
gurudeenverma198
दूरदर्शिता~
दूरदर्शिता~
दिनेश एल० "जैहिंद"
*हिंदी दिवस*
*हिंदी दिवस*
Atul Mishra
एक दूसरे से कुछ न लिया जाए तो कैसा
एक दूसरे से कुछ न लिया जाए तो कैसा
Shweta Soni
मेरा प्रदेश
मेरा प्रदेश
Er. Sanjay Shrivastava
गणेश वंदना
गणेश वंदना
Bodhisatva kastooriya
निभाना साथ प्रियतम रे (विधाता छन्द)
निभाना साथ प्रियतम रे (विधाता छन्द)
नाथ सोनांचली
युग बीते और आज भी ,
युग बीते और आज भी ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
सच तो रोशनी का आना हैं
सच तो रोशनी का आना हैं
Neeraj Agarwal
महा कवि वृंद रचनाकार,
महा कवि वृंद रचनाकार,
Neelam Sharma
From dust to diamond.
From dust to diamond.
Manisha Manjari
पिछले पन्ने 3
पिछले पन्ने 3
Paras Nath Jha
प्रेम एक्सप्रेस
प्रेम एक्सप्रेस
Rahul Singh
बन्द‌ है दरवाजा सपने बाहर खड़े हैं
बन्द‌ है दरवाजा सपने बाहर खड़े हैं
Upasana Upadhyay
*रंग बदलते रहते मन के,कभी हास्य है-रोना है (मुक्तक)*
*रंग बदलते रहते मन के,कभी हास्य है-रोना है (मुक्तक)*
Ravi Prakash
मौसम नहीं बदलते हैं मन बदलना पड़ता है
मौसम नहीं बदलते हैं मन बदलना पड़ता है
कवि दीपक बवेजा
अलबेला अब्र
अलबेला अब्र
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
हँसाती, रुलाती, आजमाती है जिन्दगी
हँसाती, रुलाती, आजमाती है जिन्दगी
Anil Mishra Prahari
2708.*पूर्णिका*
2708.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Loading...