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16 Nov 2021 · 1 min read

लकड़ी की डाल से चिपकी एक लकड़ी का फूल थी मैं

लकड़ी की डाल से
चिपकी
एक लकड़ी का फूल थी
मैं
जैसी भी थी
पर खुद को पहचानती
एक दर्पण में झांकती
यह कोई और नहीं
खुद मैं थी मैं
दुनिया कहीं मुझे मेरी
पहचान से जुदा न कर दे
दुनिया के रंग में रंग
कहीं मैं खुद को ढूंढने लगूं
और आवाज देकर पूछूं
कहां छूटा था तेरा साथ
इस भीड़ में कैसे खुद को
तलाशूं
कहां छूटी थी खुद से
कौन हूं मैं।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001

Language: Hindi
292 Views
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