Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Feb 2017 · 6 min read

रमेशराज के बालगीत

।। बल्ला।।
————————–
करतब खूब दिखाता बल्ला
हाथों में जब आता बल्ला।

हंसते-हंसते क्रिकिट खेले
जमकर गेंद घुमाता बल्ला।

कपिल देव के साथ अगर हो
छक्के खूब लगाता बल्ला।

गावस्कर जो पिच पर आये
फिर तो शतक बनाता बल्ला।

गेंद नाचती ता-ता-थइया
जब भी मार लगाता बल्ला।

आसमान को जाकर छूती
ऐसे गेंद उड़ाता बल्ला।

यदि अच्छा हों गेंदबाज तो
तनिक नहीं टिक पाता बल्ला।

जिसने दिखलायी चतुराई
उसको जीत दिखाता बल्ला।
+रमेशराज

|| दिन ||
—————–
जागो-जागो सबसे कहता
बड़े सवेरे आता दिन।

धूप भरे पल ढेरों सारे
बांध गठरिया लाता दिन।

सूरज-काका से रखता है
बड़े निकट का नाता दिन।

अंधियारे से लड़ना सीखो
हम सबको समझाता दिन।

खेत, कियारी, नदिया, घाटी
घर आंगन चमकाता दिन।

कोष लुटाता उजियाले के
लगे कर्ण-सा दाता दिन।

हर दम बस चलता ही रहता
तनिक नहीं सुस्ताता दिन।

पता न चलता कहां न जाने
शाम हुए खो जाता दिन?
+रमेशराज

।। सूरज।।
——————-
इतनी मोहक बीन बजाता
हर कोई मोहित हो जाता
सुबह सपेरा बनता सूरज।

लाल-लाल पीली गुलाल-सी
फैला देता धूप जाल-सी
सुबह मछेरा बनता सूरज।

सबकी नींद छीन लेता है
सब जागो धमकी देता है
सुबह लुटेरा बनता सूरज।
+रमेशराज

।। घड़ी।।
—————-
चाभी के भरते ही बोले
टिक-टिक, टिक-टिक रोज घड़ी।

बैलों-सा सुइयों को हाँके
तिक-तिक,तिक-तिक रोज घड़ी।

छेड़ा करती राग सुहाने
ताक धिना धिक रोज घड़ी।

घंटे औ’ सैकिंड बताती
सबके माफिक रोज घड़ी।

कभी न थकती चलती जाती
छुक-छुक, टिक-टिक रोज घड़ी

लेकिन जब बूढ़ी हो जाती
करती झिक-झिक रोज घड़ी।
-रमेशराज

।। पत्तियाँ ।।
———————-
नीली पीली हरी पत्तियाँ
कुछ मिलतीं रसभरी पत्तियाँ।

पेड़ों पर दिखती हैं जैसे
फूलों की टोकरी पत्तियाँ।

तरह-तरह के स्वादों वाली
खट्टी कटु चरपरी पत्तियाँ।

बन जाती हैं तकिया डालें
है पक्षी की दरी पत्तियाँ।

रंग-विरंगी इतनी सुन्दर
स्वप्नलोक की परी पत्तियाँ।
-रमेशराज

।। तिरंगा लहराए ।।
———————————-
देश रहे खुशहाल, तिरंगा लहराए
चमके माँ का भाल,तिरंगा लहराए।

आजादी का पर्व मनायें हम हँसकर
कुछ भी हो हर हाल तिरंगा लहराए।

व्यर्थ न जाए बलिवीरों की कुर्बानी
ऐसे ही हर साल तिरंगा लहराए।

इसकी खातिर चढ़े भगत सिंह फाँसी पर
मिटें हजारों लाल, तिरंगा लहराए।

कर देना नाकाम सुनो मेरे वीरो
दुश्मन की हर चाल, तिरंगा लहराए।

बुरी नजर जो डाले अपने भारत पर
खींचे उसकी खाल, तिरंगा लहराए।

दुश्मन आगे बढ़े, समर में कूद पड़ो
ठौंक-ठौंक कर ताल, तिरंगा लहराए।

दुश्मन भागे छोड़ समर को पीठ दिखा
ऐसा करें कमाल, तिरंगा लहराए।

भ्रष्टाचारी तस्कर देशद्रोहियों की
गले न कोई दाल, तिरंगा लहराए।
-रमेशराज

।। तिरंगा लहराए ।।
——————————-
रहे देश का मान तिरंगा लहराए
चाहे जाये जान, तिरंगा लहराए।

युद्धभूमि में हम सैनिक बढ़ते जाते
बन्दूकों को तान, तिरंगा लहराए।

वीर शहीदों ने देकर अपनी जानें
सदा बढ़ायी शान, तिरंगा लहराए।

हर दुश्मन के सीने को कर दें छलनी
हम हैं तीर-कमान, तिरंगा लहराए।

रहे हमेशा हँसता गाता मुसकाता
अपना हिन्दुस्तान, तिरंगा लहराए।

ऐसा रण-कौशल अपनाते हम सैनिक
दुश्मन हो हैरान, तिरंगा लहराए।

हम भोले हैं लेकिन हम डरपोक नहीं
अपनी ये पहचान, तिरंगा लहराए।

पूरा कर उसको पलभर में दिखलाते
लें मन में जो ठान, तिरंगा लहराए।
-रमेशराज

।। कितने प्यारे अपने गाँव ।।
———————————–
फूल महँकते, प्यारे बाग
मीठा जल नदियों का राग।
मस्ती में नित नाचें मोर
मनमोहक झरनों का शोर।
पड़ती है ढोलक पर थाप
उस पर थिरक रहे हैं पाँव
कितने प्यारे अपने गाँव।।

खरगोशों जैसा रख रूप
खेतों बीच फुदकती धूप
मीठी बोली बोलें लोग
अहंकार का यहाँ न रोग
प्यार भरी कोयल की कूक
भोर हुए कागा की काँव |

कूलर को भी देती मात
नीम और पीपल की छाँव
कितने प्यारे अपने गाँव।
-रमेशराज

।। गाँव ।।
——————————
कितने प्यारे-प्यारे गाँव
जैसे चाँद-सितारे गाँव।

स्वर्गलोक की नगरी ज्यों
लगते नदी-किनारे गाँव।

फूलों की भाषा में सबसे
करते शोख इशारे गाँव।

यहाँ हर तरफ दृश्य सुहाने
सुख के बने पिटारे गाँव।
-रमेशराज

|| बन्दर मामा ||
——————————
बन्दर मामा पहन पजामा
इन्टरब्यू को आये
इन्टरब्यू में सारे उत्तर
गलत-गलत बतलाये।
ऑफीसर भालू ने पूछा
क्या होती ‘हैरानी’
बन्दर बोला- मैं हूँ ‘राजा’
बन्दरिया ‘है रानी’।
भालू बोला ओ राजाजी
भाग यहाँ से जाओ
तुम्हें न ‘बाबू’ रख पाऊँगा
घर पर मौज मनाओ।
+रमेशराज

|| ‘ मेंढ़की ’ ||
———————–
भरे कुलाचें, मारे डुबकी
हो आती पाताल मेंढकी।

हरदम टर्र-टर्र करती है
खूब बजाती गाल मेंढ़की।

फुदक-फुदककर, मटक-मटककर
चले गजब की चाल मेंढ़की।

सावन में जब ताल भरें तो
होती बड़ी निहाल मेंढ़की।

डरकर दूर भाग जाती है
देख बड़ा घडि़याल मेंढकी |
+रमेशराज

|| चिडि़या रानी ||
———————-
हुआ सवेरा, छोड़ घौंसला
आए बच्चे नदिया के तट
फूल खिले हैं सुन्दर-सुन्दर
बिखरे दाने पनघट-पनघट
अब बच्चों को दाना चुगना
सिखा रही है चिडि़या रानी ||

नदी गा रही कल-कल कल-कल
बदल रहा है मौसम प्रतिपल
गर्म हवा कर दी सूरज ने
अँकुलाहट भर दी सूरज ने,
जल के भीतर डुबकी लेकर
नहा रही है चिडि़या रानी ||

कैसे पंखों को फैलाना
कैसे ऊपर को उठ जाना
कैसे पूंछ हवा को काटे
कैसे उड़ना ले फर्राटे
पंजों पर बल देना कैसे
आगे को चल देना कैसे
बच्चों को अपने सँग उड़ना
सिखा रही है चिडि़या रानी ||
+रमेशराज

|| अब का काम न कल पै छोड़ो ||
—————————————-
मीठा होता मेहनत का फल
भाग खुलेगा मेहनत के बल।

छोड़ो निंदिया, आलस त्यागो
करो पढ़ायी मोहन जागो।

आलस है ऐसी बीमारी
जिसके कारण दुनिया हारी।

मेहनत से ही सफल बनोगे
जग में ऊँचा नाम करोगे।

मेहनत भागीरथ ने की थी
पर्वत से गंगाजी दी थी।

मेहनत से तुम नाता जोड़ो
अब का काम न कल पै छोड़ो।
+रमेशराज

|| कहें आपसे हम बच्चे ||
———————————-
भेदभाव की बात न हो
घायल कोई गात न हो।
पड़े न नफरत दिखलायी
रहें प्यार से सब भाई।
करें न आँखें नम बच्चे
कहें आपसे हम बच्चे।

हम छोटे हैं- आप बड़े
यदि यूँ ही अलगाव गढ़े
नहीं बचेगी मानवता
मुरझायेगी प्रेम-लता
झेलेंगे हम ग़म बच्चे
कहें आपसे हम बच्चे।
+रमेशराज

।। लिफाफा।।
दिल्ली और कलकत्ता जाता
देश-विदेश घूम के आता।
यात्रा करता बस रेलों में
कैसे मजे उड़ाये लिफाफा।
माना इसके पैर नहीं है
फिर भी दौड़ लगाये लिफाफा।

मित्रजनों की खबरें लाये
खुशियों के बादल बरसाये।
दूर रहा करते जो हमसे
उससे हमें मिलाये लिफाफा।
देखो तो थोड़े पैसे में
बिगड़े काम बिनाये लिफाफा।

सम्पादक को रचना भेजो
कहानियां, कविताएं भेजो।
स्वीकृतियां औ’ अस्वीकृतियां
आये दिन ले आये लिफाफा।
पैसे देकर पड़े छुड़ाना
जब बैरंग हो जाये लिफाफा।
-रमेशराज

।। दिन।।
जागो जागो सबसे कहता
बड़े सवेरे आता दिन।

लाल सुनहरे धूप के पर्वत
बांध गठरिया लाता दिन।

सूरज दादा से रखता है
बड़े निकट का नाता दिन।

अंधियारे से लड़ना सीखो
हम सबको सिखलाता दिन।

खेत, कियारी, नदिया, घाटी
घर-आंगन चमकाता दिन।

उजियाले के कोष लुटाता
लगे कर्ण-सा दाता दिन।

हरदम बस चलता ही रहता
तनिक नहीं सुस्ताता दिन।

पता न चलता कहां न जाने
शाम हुए खो जाता दिन।
-रमेशराज

। बल्ला ।।
————————
करतब खूब दिखाता बल्ला
हाथों में जब आता बल्ला।

कपिलदेव के साथ अगर हो
छक्के खूब लगाता बल्ला।

हंसते-हंसते क्रिकेट खेलते
जमकर गेंद घुमाता बल्ला।

गावस्कर जो आये पिच पर
फिर तो शतक बनाता बल्ला।

गेंद नाचती ता ता थइया
ऐसी मार लगाता बल्ला।

आसमान को जाकर छूता
ऐसे गेंद उठाता बल्ला।

यदि अच्छा हो गेंदबाज तो
तनिक नहीं टिक पाता बल्ला।

जिसने दिखलाई चतुराई
उसको जीत दिलाता बल्ला।
-रमेशराज

।। दादाजी ।।
———————–
सीख भरी नित बातें करते
नव उत्साह सभी में भरते
कभी किसी से झूठ न बोलें दादाजी।

इनको प्यारी दहीपकौड़ी
गर्म बरूले और कचौड़ी
लड्डू हों तो फूले डोलें दादाजी।

किसी काम जब बाहर जाते
जल्दी-जल्दी खाना खाते
चश्मा छाता छड़ी टटोलें दादाजी।

वीरों वाली कथा सुनाते
देशभक्ति के गाने गाते
नये ज्ञान की बातें खोलें दादाजी।

जादू कुछ ऐसा दिखलाते
बच्चे सभी दंग रह जाते
निकले गोला, जो मुँह खोलें दादाजी।
-रमेशराज

।। गांव।।
—————————–
सुख के लगें पिटारे गांव
कितने प्यारे-प्यारे गाँव।

दूर-दूर तक ऐसे फैले
जैसे चाँद-सितारे गाँव।

स्वर्ग-लोक की नगरी कोई
लगते नदी-किनारे गाँव।

दीप सरीखे जगमग-जगमग
होते सांझ-सकारे गाँव।

शहर बोझ-सा दे देते हैं
सबकी थकन उतारे गाँव।

यहां मिलेंगी खुशियां-खुशियां
दुख-दर्दों से न्यारे गाँव।

फूलों की भाषा में सबको
करते शोख इशारे गांव।

यहां हरतरफ दृश्य सुहाने
सुख के हुए पिटारे गाँव।
-रमेशराज

।। मोर ।।
——————–
फैलाकर नित पंख सुहाने
नाचा करता प्रतिपल मोर।

छाते जब भी नभ पर बादल
होने लगता चंचल मोर।

पेंकू-पेंकू राग छेड़ता
देख-देखकर बादल मोर।

खूब कुलाचें भरता फिरता
नदिया नाले जंगल मोर।

दिखने में जितना है सुंदर
है उतना ही निश्छल मोर।
-रमेशराज

।। नदी ।।
कल-कल-कल-कल, झर-झर-झर-झर-झर
छेड़े मीठा राग नदी।

ढेरों तट पर बिखरा देती,
साबुन जैसे झाग नदी।

वर्षा के मौसम में करती
कैसी भागमभाग नदी।

बल खाकर चलती है ऐसे,
जैसे कोई नाग नदी।

कभी न भूले रस्ता अपना,
रखती अजब दिमाग नदी।
-रमेशराज

।। नानी ।।
————————-
बड़े सवेरे पूजा करती
ईश्वर की प्रतिमाएं नानी।

बड़े चाव से फिर पढ़ती है
ज्योतिष की पत्राएं नानी।

रोज सुनाती अच्छी-अच्छी
सबको लोककथाएं नानी।

ढेरो सारी याद किये है
लोरी औ’ कविताएं नानी।

अच्छे-अच्छे सबक सिखाती
लगा पाठशालाएं नानी।

जब हमको कुछ भी दुःख हो तो
हर लेती चिन्ताएं नानी।

बूढ़ी है सो अजब बनाती
अपनी मुख-मुद्राएं नानी।
-रमेशराज
————————————————————
+रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001

Language: Hindi
401 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
2336.पूर्णिका
2336.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
"खुश रहने के तरीके"
Dr. Kishan tandon kranti
होली पर
होली पर
Dr.Pratibha Prakash
वादा तो किया था
वादा तो किया था
Ranjana Verma
जो चाहने वाले होते हैं ना
जो चाहने वाले होते हैं ना
पूर्वार्थ
आपातकाल
आपातकाल
Shekhar Chandra Mitra
मेरा देश महान
मेरा देश महान
Dr. Pradeep Kumar Sharma
*कोई चाकू न नफरत का, कहीं पर मारने पाए (मुक्तक)*
*कोई चाकू न नफरत का, कहीं पर मारने पाए (मुक्तक)*
Ravi Prakash
याद रखते अगर दुआओ में
याद रखते अगर दुआओ में
Dr fauzia Naseem shad
Sari bandisho ko nibha ke dekha,
Sari bandisho ko nibha ke dekha,
Sakshi Tripathi
#मुक्तक
#मुक्तक
*Author प्रणय प्रभात*
दरिया का किनारा हूं,
दरिया का किनारा हूं,
Sanjay ' शून्य'
खोटा सिक्का
खोटा सिक्का
Mukesh Kumar Sonkar
दोहा
दोहा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
चाय-दोस्ती - कविता
चाय-दोस्ती - कविता
Kanchan Khanna
ये राज़ किस से कहू ,ये बात कैसे बताऊं
ये राज़ किस से कहू ,ये बात कैसे बताऊं
Sonu sugandh
प्रभु शरण
प्रभु शरण
चक्षिमा भारद्वाज"खुशी"
💐प्रेम कौतुक-444💐
💐प्रेम कौतुक-444💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
यादें...
यादें...
Harminder Kaur
तेरी गली से निकलते हैं तेरा क्या लेते है
तेरी गली से निकलते हैं तेरा क्या लेते है
Ram Krishan Rastogi
लघुकथा -
लघुकथा - "कनेर के फूल"
Dr Tabassum Jahan
जग अंधियारा मिट रहा, उम्मीदों के संग l
जग अंधियारा मिट रहा, उम्मीदों के संग l
Shyamsingh Lodhi (Tejpuriya)
👨‍🎓मेरा खाली मटका माइंड
👨‍🎓मेरा खाली मटका माइंड
Ms.Ankit Halke jha
नया विज्ञापन
नया विज्ञापन
Otteri Selvakumar
*सत्य*
*सत्य*
Shashi kala vyas
बुझा दीपक जलाया जा रहा है
बुझा दीपक जलाया जा रहा है
कृष्णकांत गुर्जर
पिता
पिता
Harendra Kumar
ऐसा क्या लिख दू मैं.....
ऐसा क्या लिख दू मैं.....
Taj Mohammad
हूं तो इंसान लेकिन बड़ा वे हया
हूं तो इंसान लेकिन बड़ा वे हया
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
बरसात (विरह)
बरसात (विरह)
लक्ष्मी सिंह
Loading...