यह कैसी दिल्लगी ?
आखिर क्यों पालते हैं लोग,
अपने घरों में जानवर ?
समय बिताने के लिए ,
या दिल बहलाने के लिए?
समय तो चलो ! अच्छा गुज़र जाता है.
इंसान का जानवर के साथ ,
जानवर का इंसान के साथ ,
समय बहुत अच्छा गुज़र जाता है .
इसमें तो कोई बुराई नहीं.
दोनों इक दुसरे से खुश हों,
इसमें तो कोई हर्ज़ भी नहीं.
एक आधुनिक इंसान के लिए ,
जानवर का साथ कितना महत्वपूर्ण है?
वोह उसे क्या समझता है ?
एक जानवर ! कोई वस्तु ,या कहीं उससे बढ़कर ,
एक परिवार का अहम् सदस्य .
या इंसान की सोच /जज़बात / ज़रूरत पर ,
निर्भर करता है.
मगर एक संक्षिप्त बुद्धि वाला, मासूम छोटे से दिल वाला,
बेजुबान जानवर उस अस्थायी रिश्ते को ,
बड़ी शिद्दत से महसूस करता है.
एक इंसान के लिए उस जानवर के सिवा ,
और बड़ी दुनिया हो सकती है.
मगर एक जानवर के लिए उसका मालिक ही ,
एक पूरी दुनिया है.
जाने क्यों इंसान उस मासूम ,छोटे से दिल को ,
क्यों समझ नहीं पाता है.
पढता है बड़ी-बड़ी किताबें, ग्रन्थ ,वेद -पुराण ,
मगर किसी की संवेदनाओं को नहीं पढ़ पाता है.
अजी ! इंसान ,इंसान को नहीं समझता ,जानवर की तो बात छोड़ो.
इंसान को भले ही तुम न समझो ,
वोह तो प्रतिकार कर अपना हक कैसे भी तुमसे ले लेगा .
मगर जानवर के एक भोले ,निश्छल ,निष्कपट मन,
उनकी संवेदनाओं को कौन समझेगा ?
उसकी अस्पष्ट ,अव्यक्त वाणी को ,
तुम्हारे सिवा कौन समझेगा?
जानवर भी है परमात्मा की अनमोल कृति .
उसकी भावनाओं का सम्मान करो.
ना उसके जीवन से ,और ना ही उसके दिल से खेलो.
उसे भी सरंक्षण, व् जीने का सामान अधिकार दो.
यदि निभा सकते हो स्नेहपूर्ण ,निस्वार्थ रिश्ता ,
तो घर में उस मूक संवेदनशील जीव को लाओ.
अन्यथा पहले नेह का बंधन बांधकर ,
तदोपरांत बेदर्दी से अपना दामन मत छुडाओ .
उसे प्यार दो , अपनत्व दो, सम्मान दो ,मगर उसके साथ ,
कृपया दिल्लगी मत करो.