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18 Feb 2021 · 1 min read

मेरी कलम से पूछो

मेरी कलम से पूछो

मेरी कलम से पूछो
कितने दर्द समाये हुए है

मेरी कलम से पूछो
आंसुओं में नहाये हुए है

जब भी दर्द का समंदर देखती है
रो पड़ती है

सिसकती साँसों से होता है जब इसका परिचय
सिसक उठती है

ऋषिगंगा की बाढ़ की लहरों में तड़पती जिंदगियां देख
रुदन से भर उठती है

मेरी कलम से पूछो
कितनी अकाल मृत्युओं का दर्द समाये हुए है

वो कली से फूल में बदल भी न पाई थी
रौंद दी गयी

मेरी कलम से पूछो
उसकी चीखों के समंदर में डूबी हुई है

Language: Hindi
1 Like · 247 Views
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