माहिया छन्द
आंखों से झरती है
मोती की लरियाँ
जब प्रीत उमड़ती है ।१।
प्रिय से संताप हुआ
बेसुध – सी विरहण
मांग रही प्रीत – दुआ ।२।
बांधों ना दीवारें
प्रिय! फूट न डालो
पालो ना तकरारें ।३।
तोड़े बंधन सारे
तुम्हारे वास्ते
हम अनजान सितारे ।५।
चुपके पाँव दबाए
वक़्त चला आया
फिर से घात लगाए ।६।
कंटक भी उग आया
मन-फुलवारी में
माली अति- घबराया ।७।
©ऋतुपर्ण