माँ की यादें
जिसकी माँ बचपन में ही अपने बेटे को अकेला छोड़ देती है उस बेटे के मुँह से निकली ये बाते, जिसको मैं कुमार अनु ओझा, अपनी कलमों से सजाने के प्रयास किया हु ।
माँ तूने मुझे जन्म दिया
रोते बिलखते तड़पता रहा।
बचपन में छोड़ तू चली गयी
मैं प्यार को तेरा तरसता रहा।।
तेरी याद मुझे सताती रही
मैं इधर उधर भटकता रहा।
नहीं था कोई सवांरने वाला
मैं प्यार को तेरा तरसता रहा।।
बहुतो ने मुझे खूब सताया
रोज डूबकर मै उगता रहा।
मुश्किलें तो झेलना मेरी आदत सी बन गई
पर प्यार को तेरा तरसता रहा।।
थोड़ा काबिल हुआ हूँ आज क्योंकि
तेरा आशीष मुझपे बरसता रहा।
टीका रहा मैं अपनी बुनियाद पर
असफलता भी मुझसे हारता रहा।।
तुम शक्ति देती नित हम सबको
अमृत का गागर पनपता रहा।
जीवन के इस सुने उपवन में
जान बूझकर मैं हंसता रहा।।
?कुमार अनु ओझा