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22 Sep 2021 · 11 min read

मँझधार ०६

1. मेसोपोटामिया सभ्यता

दजला और फरात नदियाँ माँझ
मेसोपोटामिया सभ्यता का इराक
अर्द्धुक सभ्य शिष्ट वृहत साहित्य
अंक खगोल विद्या का प्रसार

सुमेर अक्कद बेबीलोन असीरिया
सुमेरी अक्कदी अरामाइक भाषा
इमारत मूर्ति आभूषण कब्र औजार
मुद्राओं लिखित दस्तावेजों का सार

ओल्ड टेस्टामेण्ट बुक ऑफ जेनेसिस शिमार
पुरखा मेदिनी पन्थी प्राज्ञी यूरोप
उत्तरी सीरिया तुर्की भूमध्यसागरीय प्रदेश
उतनापिष्टिम जलप्लावन आज्ञप्ति

असतत भौगोलिक पूर्वोत्तर इराक
वृक्षाच्छादित गिरिपान्त हरीतिमा मैदान
निर्मल उत्स कान्तार सारङ्ग मेह
काश्त आगाह आजीविका निर्ज्वर साधन

शरत वृष्टि उत अरण्य तृण
परवरिश होती त्रिशोक बाशिन्दा
दजला मुआफिक संवहन विषघ्निका तिय
याम्या मरुखण्ड पुर लिपी प्रादुर्भाव

फरात दजला उर्वर रज लतीफ़
उदीची अंझाझारा प्लावन आप्लावन
ग्राम्य उत्कर्ष शहर उद्भव पराकाष्ठा
समवर्ती हड़प्पा चीन मिस्र सभ्यता संयोग

कांस्य लोह युगेन पुरातात्त्विक काल
सिकन्दर वाया उच्छित्ति सभ्यता
रालिंसन बिहिस्तून आत्त तफ़्तीश
शिलालेख से अध्येय ओहार अध्याहार

आदर्श एकल विवाह वनिता अहमियत
आस्तिक शिक्षित अधिवासी विशिष्टता
कीलाकार लिपिक संहिताबद्ध धारा
वार्का शीर्ष आमदरफ़्त एकछत्र साया

2. भयभीत हूँ

नव्य जीवन सौगात धारा पैग़ाम
पुलिकित निराकार मदोन्मत शृङ्गार
तप उठी उस रोधन हृदय ठाँव
कल्पित कर रही मौन मयूख नाद

निर्झर चक्षु नीर अभिशप्त पड़ा
करुणामयी कलङ्क हुताशन धरा
प्रलय वसन्त में ओझल इम्तिहान
फिर क्यों धार नव्य वसन्त शृङ्गार ?

एक दीपक समाधि में निभृत भरा
प्रज्वलित पङ्क्ति भग्नावशेष ईंढ
स्वयं विसर्जित तअम्मुक़ क़ियाम
अंकुर लहर मर्त्य – सा कलश

उच्छ्वसित – सी चिर अखण्ड स्नेह
स्मृति विलीन थी उस प्रकाश पुञ्ज
गर्वाग्नि धायँ – धायँ प्रज्वलित
फूट पड़ी उज्ज्वल राग रति रूप

पथ – पथ मँझधार पतझड़ सुरभि
भयभीत हूँ अनात्म भरी धृति – सी
इस कँटीली अबाध नश्वर प्रतीत – सी
मानो दे रहा सृष्टि त्रास टङ्कार

3. लालिमा

नभ में सूरज की लालिमा
इन्द्रधनुष सप्तरङ्ग की छाया
भोर सारङ्ग साँझ दीवानी
कर रही पुष्प मन मस्तानी

स्वर – नाद प्रस्फुटित होती भव
कर नतशिर तरुवर त्रिदिव
करती अनाविल धरा अगवानी
होती महफ़िल इब्तिदा मदन

समीर अरसौहाँ मन्द – मन्द ऊर्मी
क्षितिज रश्मि उत्कण्ठित मानिन्द
पारावार चन्द्रज्योत्स्ना रोह उमङ्ग
तअज्जुब मदमाती कजरारे धरा

स्फुलिङ्ग रवानियाँ रूपहली आभा
भाव – विभोर भव्य भवसागर
पुष्पवटुक पूर्णाहुति प्रीति – राग
विच्छिन्न विभूति व्योम – विहार

स्वच्छन्द समरस सुरसरि शहज़ोर
शृङ्गार शौर्य सुनाती विरुदावली दास्ताँ
रोमाञ्च भर उठती रोमावलि काया
मृग – मरीचिका मधुकर मतवाला

4. झूम – झूम

बादल दादा आओ न
मुझको एक गीत सुनाओ न
झूम – झूम घूम – घूम कर
पानी का बहार लाओ न

किसानों पर पड़ी समस्या
उसका भी पयाम लाओ न
झूम – झूम घूम – घूम कर
खेतों में पानी बरसाओं न

नदियाँ तालाब सूख रहे
पानी का अकाल बढ़ चले
जीव – जन्तु व पेड़ – पौधें
पानी के लिए सब तरस रहें

फिर बादल दादा लगाई टङ्कार
बिजली ऊपर से कौन्ध पड़ी
काली नीली ऊपर आसमान
पानी के बरस रहे बहार

मेण्ढ़क टर – टर कर रहें
मछली ख़ुशी से नाच रहें
सरसों की झूमती हरियाली
कितनी सुन्दर कितनी भाती !

बच्चें जब सुनें टङ्कार
नाव – छाता ले दौड़ लगाई
झूम – झूम घूम – घूम कर
बच्चें खुशी से नाच उठें

चिड़ियाँ चूं – चूं करती जाती
आपस में कभी लड़ती जाती
कितने सुन्दर कितने प्यारी !
सबको कितने सुन्दर भाती !

चिड़ियाँ घर को लौट गयें
किसान खेतों की ओर बढ़ चलें
सूरज भी आए वों भी गये
पानी अभी बरस – बरस रहे नभ

5. मैं मीत हूँ

इस माटी की कुर्बानी हुँकार कर रही
मानवता तन्मयता का रसगान कर रही
मैं दीवाना बन चला इस रोधन में
मैं कर्तव्यों का भार लिए इस तोरण में

प्रफुल्लित हो रहा लहराती कुसुम
महिमामण्डित रही शैशव वितान कौसुम
मैं मीत हूँ , रग – रग में समा रहा
मध्वक कशिश नहीं , अन्वय अनुराग

विकल विह्वलता तन रही इस खल
तमाशबीनों बनकर रह गया बस अज्वाल
इस कसाव कहर बाजार में , मैं विरक्ति
वैभव प्रासाद मदिरालय निखिल अनुरक्त

इस ईप्सा लिप्त का कगारे नहीं
मैं जितेन्द्र वसन्त में अवसाद नहीं
चित्मय वाग्मी उदात्त आलोक अंगीकार
उद्धत ऊसर आतप रही अंतर्विकार

आलोल सरिता वाहित अहर्निश मुझमें
प्रमोद प्रगाढ़ निर्विकार नूर मञ्ज़िल में
तप्त उर गात त्रस्त त्राहि – त्राहि क्लेश
कौतूहल आत्मविस्मृत – सा क्यों हम अन्देश ?

6 . कहाँ ओझल ?

आमद पुनः , पुनः कहाँ ओझल
भव दीवा क्षीर तम नीर
पपीहे पिक रीछ भव सार
खोजूँ मैं विरह वेदना तीर

उद्विग्न हिय अरुक्ष कली
आण्विक शून्यता अतल रोध
तुङ्ग अब्दि इन्दु तत्व ओज
आसव प्लावित चित्त निवृति

अँगना अंगना रम्य जोन्ह
अशक्त असक्त अनल अनिल
दीर्घ उद्दीप्त कृति कीर्त्ति
अलि भोर विहग रति कूजन

मरीची मरीचि वल उडु ओज
करील करिल – सा उपरक्त उपरत
आसत्ति आसक्ति अभेद अजिर
विभोर यति यती पुष्कल – सा विरद

तरणि दामन तरणी प्रवाह
आधि आर्त अगम झल – सा
मृदु कल्पनातीत चरम चाव अलिक
अत्युग्र अश्म – सा हयात धार

7. पृथ्वी माँ

मेरी धड़कन स्कन्द पृथ्वी माँ
धरा तोयम् विश्व अम्बर
प्रकृति की हरीतिमा संसार
आप्यायन निरन्तर समाँ समाँ

अनापा अवनि परवरिश पाणि
विपिन वारि काश्त घड़ी आहार
वतीरा प्रोच्छून अखीन अग्रहार
हयात आवार प्राणी पाणी

सृष्टि प्राकट्य पयोधि मुत्तसिल
अनात्म से आसना अज़ीम धरा
मीन मण्डूक मुस्तनद असार
अध्वगामी निलय आदम उच्छशिल

प्रभा पुञ्ज शाक्वर मार्तण्ड
ज्योत्स्ना तम हेमपुष्प मसृण
मेह झञ्झावत अंतर्निवेश अमसृण
अह्न निशि घड़ी अचण्ड उच्चण्ड

सौन्दर्य विहार पारितन्त्र अंतर्क्रिया
अन्योन्याश्रित अवयव ऊर्जा प्रवाह
अनैसर्गिक अणु अगम अरवाह
होती खलक तारतम्य आविष्क्रया

8. बच्चे जा रहें हैं

क्या आफत आ पड़ी यहाँ ?
पौ फटी , बच्चे जा रहें हैं
कहाँ ? , काम करने
समस्या का बोझ इतना दबा
बच्चें भी लगे जाने काम

गरीबी की स्याही में विलीन
अर्थ सङ्कट का विषाद भरी
भोजन – भोजन के तरसते लोग
क्या उसकी गुनाह की ताज़ीर ?
या पाछिल कर्म की प्रायश्चित्त !

बञ्जारा दिलगीर बच्चों की टोली
एक परतल लिए भँगार में इस्लाह
आपा खोए मिलते नित इर्द – गिर्द
मुस्तक़बिल प्रभा दफ़्ना के
यतीम तफ़रीह शाकिर परवरिश

रङ्ग – बिरङ्गे इन्द्रधनुष के वितान
पुष्प कलित आबदार प्रस्त्रवण
मेघ दामिनी नूतन अश्रु बहार
नव कोम्पल उद्भव पुष्कर पिक नतशिर
फिर बच्चें क्यों हैं अभिशप्त लाञ्छन ?

विकराल प्रतिच्छाया क्षितिज इफ़रात
ज्वार कहर दहन आरसी प्रहार
मरणासन्न के शून्यता में समाधित
दोज़ख मधुशाला में इन्तिहा धरा
दुनिया आगाह कदाचित् आगाह

9. क्या लिखूँ मैं ?

अब क्या लिखूँ मैं ?
इस मिथ्यावादी धरा में
जग – जग को लूट रहा
हो रहा जहाँ विश्व कलङ्क

मनुज रहा दुर्जन की कगार
असभ्य से सभ्यता का विकास
फिर क्यों जा रहा है जहाँ ?
वापस वहीं समय धरा तक

क्या चाह है इस मानव का ?
जीवन जीना या न्योछावर कर देना
इस जीवन की आडम्बर में
अंगुश्तनुमा परिहास का मन्वन्तर

नापाक भर रही चित्त विक्षेपि
चारुमयी हरीतिमा की एहतियात
रुग्णता का व्याध माहुर – सी
आप्यान की ही क्यों रही प्रहाणि ?

अंगना – अंग सी मत्कुण अभञ्जन
व्यथा विप्लव प्लावन पार्ष्णि
हौरिबुल कुम्भिल झङ्कृत सार
उत्पीड़न भर देती अंतः करण में

10. महङ्गाई

जीवन जीना दुसाध्य हो रहा
इस महङ्गाई भरी दुनिया में
रोज – रोज कीमत की तादाद
विकल त्रास तृष्णा की क्यों मृगाद ?

दारुण विडम्बना की मण्डी महाशून्य
इच्छा निरोधस्तपः निर्मम घात
पसोपेश अबलता व्यतीपात व्यङ्गय
अकिञ्चित्कार स्पृहा मुख़ालिफ

चकाचौन्ध अनुपशान्त अकूत प्रपञ्च
आहत खिन्नता कुढ़न ग्रन्थन
ख़ुद्दारी दर्प अखिल दंश भरा
कुण्ठित ठाट णँता कृश अकारथ

उस्वाँस निनाद तड़ित् तञ्ज
सम्भार वाञ्छा ऐश्वर्य जगत
इंहिसार निज़ात निरोध तार्क्ष्य
आखोर औन्धा नृशंसता आडम्बर

देवारी – सी स्पर्द्धा किसबी बलात्
कार्पण्य उपालम्भ ख़ुद्दारी मगरूर
वज्रादपि कठोराणि सन्तप्त काँखते
अँधड़ कदर वाञ्छित निहारी

11. अंशु नूर

मारुत चली वक्त के तालीम
गिरि धरा वारिश अवलेप समर
घनघोर व्यवधान रही इस मसविदा
प्रत्यागमन करूँ या अग्रेषित रहूँ ?

इच्छा शक्ति पखान भग्न क्यों ?
आरजू पारावार विस्मृत कहाँ ?
मञ्जुल अनागत का अन्धियारा
प्रतिभास बलिण्डा अत्युग्र क्यों ?

रोहिताश्व धधक रही उद्विग्नता में
अविक्रान्त है मम प्रज्ञा तस्कीन
अवसान रहा प्राणान्त के कगारे
इम्तहान महासमर में मशक्कत मेरी

हौसला विहग में तरणि मराल
व्याघात ही अभ्यनुज्ञा चाक्षुष
चन्द्रहास बनूँ अलमास वज्र
उच्छेदन कर दूँ मातम प्रतिकार

प्राग्भार फणीश उत्ताल अभ्र
प्रवाहमान धार निस्सीम ब्रह्माण्ड
आत्मोद्भवा प्रज्वलित अंशु नूर
भव सिन्धु अधोभुवन निराकार

12. टङ्कार

अरुक्ष लहर चेतन जलधाम की
यह धार नहीं लहू क्रान्ति
अनलकण चट्टान की टङ्कार
अंगार हूँ रण वीर द्युति गर्दिश

तिमिर स्याही नखत मरीचि
परिव्रज्या इमकानात नफ़ीस पन्थी
अवेध्य अश्म शून्यता में भरी
भ्रान्ति मिथ्या विक्षेप सरसी

मृगया मुफ़लिस कार्ष्णि प्रहाणि
तलब अंकुश विषाद ज़मीर
तम्बीह आलिम नहीं पाण फ़कीर
मुस्तक़बिल खल तन्हा अलम

अश्मन्त क्लेश दुर्दैव दामन
इन्द्रारि अपारग इस्क़ात काल
कोलाहल दहर धरा रक्ताल्पता
हाहाकार रुग्णता का शीर्णौपाद

तारुण्य हरीतिमा जाग्रत खलक
मुहाफ़िज परिवेष्टित हो प्लावित
क्षुब्ध मुहुँ निरुद्विग्न का सिन्धु
अशनि – पात आतप तजहु कर

13. अदृश्य मैं

मृगाङ्क की कलित शबीह
पद्मबन्धु की राज्ञी या अभिसर
अंतर्भावना शून्यता में प्रभाव
ख़्वाबों के भवसागर , अदृश्य मैं

प्रादुर्भाव कर रहा चेतन हयात
रहनुमा बनकर रह गया अकेला
इस्तिक़बाल कर रही यामिनी तारक
जहाँ नव आगन्तुक का है अभिसार

विकल घात दृगम्ब के तीर
उदधि अवलम्ब झष के पीर
आर्त्तव नीरद दीप्ति नूपुर
शून्य क्षितिज दिव अंतः पुर

संसृति अचेत अवरति आसिद्ध मञ्जर
अंतर्ज्योति चैतन्य इतस्ततः आदि
क्षुण्ण – अक्षुण्ण प्रणव में अंतर्धान
उर्ध्व स्थिर अधोगति पराकाष्ठा

आण्विक द्वयणुक अवकलित मिलन
पुष्पपथ से प्रवर्द्धन जीवन वृत्ति
आतम से मिला नवल चेतन
नूतन प्राज्ञत्व कलित पुष्प शृङ्गार

14. द्युतिमा राग

लम्बे – लम्बे तरुवर धरे
प्रकृति मेरुदण्ड क्रान्ति है
निदाघ से सदा बचाती हमें
प्राणवायु का करती अभिदान

सारिका की नाद रुचिर
षुष्प कलित की परवाना है
शकुन्त सुकून की नीन्द लेती
मख़लूक की जहाँ रैन बसेरा है

पल्लव – मन्दल से आच्छादित
हरियाली ताज़्जुब तस्दीक जहाँ
अलँग – अलँग कान्तार अनुकृति
अवरज माँझ दीर्घ अनुहार

वृत्ति जिदगी का मनुहसर रहा
रफ़्ता – रफ़्ता पुरोगामी परवरिश
अभिषिक्त करती देवान्न मही
अम्बु दीप्ति वाति आलम्ब

ख़िजाँ शरद सदाबहार नाही
प्रस्फुटित होती नव्य माधव में
मुकुर अनादि द्युतिमा राग
अर्णव तीर अनुषङ्ग कलित धरा

15. भोर सारङ्ग

दूर से आती रश्मि आदित्य
प्रकाश पुञ्ज की धड़कन है
क्या खूबसूरती हमार गाँव है !
वहीं खुशबू की अलग नज़ीर !

हिलकोरे करती सरसों डाल
बयार के बहारों सङ्ग
मान्दगी यतीम तर्पित पीर
परिणति प्रारब्ध रञ्जिदा रही

विदग्ध भरी कृषिवल आमोद
बारहिं बारा आफ़त सहतेउँ तासु
जलप्रलय ऊसर असार तुषार धरा
विवशता रही बुभुक्षा सम्भार

पुन्नाग निर्घात अभ्रभेदी रहा
ऊर्ध्वमुखी दुरन्त ग्रामीय नेही
अक्षोभ रहा अस्तगत आच्छन्न
अनाविल अनासक्त छायामय

व्यामोह ज्योत्स्ना सौम्य निश्चलता
भोर सारङ्ग चारु नव्य चेतन
विहगम कलवर घनानन्द – सी उमङ्ग
द्यौ विदित होता जग संसार

16. सन्ताप भरी गौमाता

महतारी मेरी अभिरति गौमाता
उपनिषद् – वेदों के अनुयाता है
आर्यावर्त की मञ्जूल भवितव्यता
जहाँ सन्दानिनी अगाध्य अधिष्ठाता

परवरिश करती रुधिर गात्र से
अनुज्ञा सऋष्टि संसार विधाता
पञ्चगव्य सोम जीवनम् उदधि
वनिता गीर्वाण रिहायश जहाँ

आढयता अंतश्छद् छत्रछाया का
प्राणवायु अनन्तर प्रदायी अर्णोद
मनीषी सावर्णि अगौढ़ इन्द्रियार्थ
वेदविहित ऊर्मी ईशित्व उद्ग्राहित

धेनु ललकार की कोलाहल
रियाया की उपेक्षा का बहार है
भक्षक की विडम्बना का आप्यान
क्लेश भरी अंतर्धान दहशत है

अश्रुयस समागम की अधोगति
मानवीयता का परिचार्य कोताही
इशरत तिजारत का रङ्गरसिया है
हुँकार कर रही मन्दसानु सन्ताप

17. कबीर

निर्विकार ब्रह्म पराकाष्ठा
प्रीति मानिन्द कलेवर भीरू
कबीर माहात्म्य निर्वाण आस्मां
मार्गिक तुङ्ग अर्णव भव अपार

ज़कात उसूल नाही यथार्थ रही
अमाया परहित सर्वतोभाव
आडम्बर का माहुर व्याल
अधिक्षेप पिपासु अगण्य अश्मन्त

आरसी आगस अध्याहार नाही
वाम जगत अस्मिता जहल
इत्मीनान मृगाङ्क में नखत है
कर रहा इख़्तियार अर्दली धीर

शमा अंगार प्रस्फुटित नाही
प्रत्यागमन कर जा तमिस्त्रा में
ज्योति धवल समर का धार
पुनर्भाव अवतीर्ण मकर वारिधि

वियङ्ग अनुगामी महानिर्वाण कर
पामर यामिनी का शमशीर बन
ख़ालिक भव दिव अब्दि नफ़्स
शिति रश्मि सच्चिदानन्द ” कबीर ”

18. कच्ची पगडण्डी

कच्ची पगडण्डी के मुसाफ़िर
कहाँ चले व्यथा प्रबल किए ?
व्यथा की उलझनें क्यों तेरी ?
अंतर्भावना की उत्कण्ठा भरी

मैं उन्मुक्त गगन का परिन्दा
मुझे जग की क्या चित्या ?
कर रही परिमोष दुनिया जहाँ
मैं विरक्ति विकल व्योम रहा

इस पराभव अभिसार का
तृष्णा भरी ज़िन्दगानी है
नग कर रही है हाहाकार
विलाप करती धरती – समीर

काहिल लोलुप कन्दला महकमा
अपरिहार्यता बन रहा अभिशाप
मख़लूक अवधूत में समा रहा
आक्षिप्त शामत अतुन्द गात

मद्धिम – मद्धिम वितान क़हर रहा
अनैश्वर्य आबण्डर पराकाष्ठा है
द्वैषमान कल्मष शारुक पतन
अवक्षीण अनुगति ज़ियादती है

19. विश्व दर्शन हूँ

जो देश है वीर कुर्बानी की
विश्व दर्शन हूँ मैं वहाँ की
जिस देश में गङ्गा बहती है
खेत – खलियान हरी – भरी रहती है

सभी सम्प्रदायों की एकता यहाँ
करतें अखण्ड ज्योति महान तहाँ
भाषा की जननी संस्कृत यहाँ
महाकाव्यों वेदों का देते ज्ञान जहाँ

मोर्य गुप्त साम्राज्यों का वालिदा
यहाँ है अशोक युधिष्ठिर की धरा
मिलती है यहाँ भौगोलिक वैविध्य
तहज़ीब पञ्चमेल यहाँ पराविद्ध

सत्यमेव जयते उत्कर्ष नाद है
अक्षय दीप्ति सनातन धर्म अंतर्नाद
दत्तचित्त हूँ उन ज्योति शून्यता
अंतर्निवेश अंतःकरण है उन अरुनता

मुक्ता रसज्ञा कतिपय धरा
आलिङ्गन – पाश अखिल उघरारा
वृहत अभेद सद्वृत्ति वतीरा
अनीक प्रीति निस्बत चीरा

20. योगः कुरु कर्माणि

आरोग्यी वीरुधा मेरी विभूति
विहित कर उस दैहिक व्यायाम
सम्प्रचक्ष् है जहाँ योगमुद्रा इल्म
चैनों – अमन सौन्दर्य आयावर्त अपार

पद्म वज्र सिद्ध बक मत्स्या वक्र तुला
गोमुख मण्डुक शशाङ्क भद्र जानुशिर
उष्ट्र माञ्ज मयूरी सिंह कूर्म पादाङ्गुष्ठ
पादोन्तान मेरुदण्डासन तशरीफ़ कर

ताड़ धुवा कोण गरुड़ शोषसिन त्रिकोण
वातायंसन हस्त – पादाङ्गुष्ठ चन्द्रनमस्कार
चक्र उत्थान मेरुदण्ड – बक्का अष्टावक्र स्पर्श
अर्धचन्द्र पादप – पश्चिमोत्तानासन लम्बवत्

सर्वाङ्ग पवन – मुक्त नौक दीर्घ नौक शत्य
पूर्ण – सुप्त – वज्र मर्कट पादचक्र पादोक्त
कर्ण – पीड़ा बाल अनन्त सुप्त – मत्स्येन्द्र चक
सुप्त – मेरुदण्डासन कशेरुक दण्ड ओज

मकर धनुर भुजङ्ग शलभ खगा नाभि
आकर्ण – धनुरासन साष्टाङ्ग – नमस्कार
विपरीत – मेरुदण्ड विपरीत – पवनमुक्तासन शिथिला
उदरासन प्रवाहिता परिपाटी तन्दुरुस्त

सूर्य – नमस्कार अश्व – सञ्चालन व्यघ्रा भुजपीड़ा
वृश्चिक शीर्षासन समग्र इन्दियाग्राह्यता सार
वेदविहीत अनुसरण मज़हब निरन्तर अमूर्त
चरितार्थ दत्तचित्तता योगः कर्मसु कौशलम्

अष्टाङ्ग योग यम नियम आसन प्राणायाम
प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि समागम है
महर्षि पतञ्जलि प्राज्ञता तत्त्व प्रविधि के
लययोग व राजयोग के कीर्ति सिद्धान्त जहाँ

शम्भूपति मन्वन्तर के अवस्तार प्रवक्ता
हड़प्पा सभ्यता की आविर्भूत अनुहरिया
काव्य – महाकाव्य कठोपनिषद सम्प्रदाय इशार्द
योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्मा परमात्मने

21. स्पन्दन उन्मद के

मेरा क्या ! इस शून्य भव जल के
आया बहुरि पुनः दीपक द्युति के चल…
आज इस , कल उस समर के कुन्तल
कहाँ छिपा मकरन्द हयात केतन के ?

प्रतिबिम्ब बिखेरती विभावरी स्वच्छन्द में
अरुण भी बढ़ चला पृषदश्व के पानी
लौटता फिर दिव से बनके तरङ्गित दामिनी
घनीभूत घन से बूँद – बूँद नीहार

चाह कहाँ होती विलीन , ओझिल भी कहाँ ?
यह चीर मही वारि तुङ्ग दीर्घ के भुजङ्ग
साध्वस भृकुटी मे छिपा अक़ीदा के नहीं
असित भी मौना कबसे कौन जानें , कैसे ?

संसृति के दरकार थी स्पन्दन उन्मद के
टूट के स्मित कलित झङ्कृत पुलक नींव
बिछाती कलेवर घेर रहा परभृत स्वर में
अघात धरा को प्रतिध्वनित कर दो धार को

अकिञ्चन आनन को न देख , शुचि उर को
बढ़ चला अभ्र पन्थ – पन्थ को बूँद – बूँद
उस शिखर तुङ्ग के उदान्त क्षितिज नभ के
कण्टकाकीर्ण का इस्तक़बाल मुझे यह कुदरत ईजाद

22. चिर – चिर होते दिवस

पूछा मै किसी से भव कहाँ तेरा ?
न जाने क्या भार लिए , कबसे ?
पीड़ा भी घूँट – घूँट के पी रहे थे
मै विस्मित – सा , क्या हुआ इसे ?

वहीं उन्मादो – सा मशक्कत कर को
इसरार लिए साश्रु का सबल नहीं
विभीत सीकड़ में सहर के प्रतीर
घनघोर शोणित के धरणी के भार

यह कमान खल के प्रचण्ड पर सर नहीं
क्यों लूटता लहू भी मुफ़लिस के ?
चिर – चिर होते दिवस के शिथिल
ज़र पङ्ख के भृत्य लगे दोज़ख के

वज्रवधिर से पूछो क्यों निहत निशा ?
ध्वनित भी नेति प्रहर क्या परिहत ?
भोर – विभोर भी तिमिर मे कबके मलिन
यह मिति भी क्या नहीं देती चिङ्गार ?

बाट जोह जोड़ रहा इन्तकाल देह के
साँस भी मिलती यहाँ घूँटन के गरल
ज़ईफ़ दरकार तरुवर अन्य करती वीरान
विप्लव बाँछती लहर ऊर्ध्वङ्ग मातम

23. महफ़िल भी जल उठी

चल दिया अंतिम बेला तट के यहाँ
महफ़िल भी जल उठी पन्नग व्याल में
अधम लहू दृग धो रही चिरते – चिरते चिर को
अवपात मै , चाल भी मेरे कच्छप के…

कारुण्य दामिनी प्रवात के रश्मि आँगन में नहीं
खोजता नभ पे वों भी मद में पड़ा
क्षितिज प्राची से लौटी खग से जाकर पूछो ?
क्या उसे भी मिली नव्य कलित नयन राग ?

उपवन भी नतशिर करती सरहद हुँकारों के
किन्तु मजहब ख़ुद में कौन्धती अपनी क्रान्ति से
इन्धुर भी कहाँ जाती , कबसे इस ओक या उस ओक
क्या केतु भी चला औरों के ऊर्ध्वङ्ग शान – सौगन्ध के ?

किञ्चित प्रत्यञ्चा चढ़ा दो स्वयंवर सीता के
परशुराम ताण्डव प्रचण्ड निर्मल कर दो संसार
अविरत नहीं यदा – कदा भी नहीं आती विभाकर अनीक
यह द्युति भी छिपा प्रसून क्लेश प्रखर के

किङ्कर , अज्ञ , वामा आनन दोज़ख के
अभिशप्त है कौतुक – सी म्यान में कृपण नहीं
त्रास में सतत पला सिन्धु भी निर्मल नहीं जिसके
कुम्भीपाक में मै भी समाँ निर्झर – सी धार

Language: Hindi
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Dr. Kishan tandon kranti
*इश्क़ न हो किसी को*
*इश्क़ न हो किसी को*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
हल्लाबोल
हल्लाबोल
Shekhar Chandra Mitra
माना की देशकाल, परिस्थितियाँ बदलेंगी,
माना की देशकाल, परिस्थितियाँ बदलेंगी,
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
चंदा मामा (बाल कविता)
चंदा मामा (बाल कविता)
Dr. Kishan Karigar
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
Rj Anand Prajapati
6-जो सच का पैरोकार नहीं
6-जो सच का पैरोकार नहीं
Ajay Kumar Vimal
स्याही की मुझे जरूरत नही
स्याही की मुझे जरूरत नही
Aarti sirsat
सावन और साजन
सावन और साजन
Ram Krishan Rastogi
ओ गौरैया,बाल गीत
ओ गौरैया,बाल गीत
Mohan Pandey
एक ग़ज़ल यह भी
एक ग़ज़ल यह भी
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
■ आज का दोहा
■ आज का दोहा
*Author प्रणय प्रभात*
23/38.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/38.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
बुद्ध को अपने याद करो ।
बुद्ध को अपने याद करो ।
Buddha Prakash
भारत सनातन का देश है।
भारत सनातन का देश है।
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
सत्य ही शिव
सत्य ही शिव
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
हिंदू धर्म आ हिंदू विरोध।
हिंदू धर्म आ हिंदू विरोध।
Acharya Rama Nand Mandal
आधुनिक युग और नशा
आधुनिक युग और नशा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
गीत
गीत
Shiva Awasthi
|नये शिल्प में रमेशराज की तेवरी
|नये शिल्प में रमेशराज की तेवरी
कवि रमेशराज
शराबी
शराबी
Dr. Pradeep Kumar Sharma
*मूलांक*
*मूलांक*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
वो बाते वो कहानियां फिर कहा
वो बाते वो कहानियां फिर कहा
Kumar lalit
मौसम जब भी बहुत सर्द होता है
मौसम जब भी बहुत सर्द होता है
Ajay Mishra
अजान
अजान
Satish Srijan
संकल्प
संकल्प
Shyam Sundar Subramanian
अध्यात्म का शंखनाद
अध्यात्म का शंखनाद
Dr.Pratibha Prakash
मौत के डर से सहमी-सहमी
मौत के डर से सहमी-सहमी
VINOD CHAUHAN
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