बहू बेटी
बहू बेटी
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माँ
मैं नहीं करूँगी ब्याह
न ससुराल जाऊँगी,
अपने घर को छोड़कर मैं
कहीं नहीं जाऊँगी।
पापा का सिर कहीं झुका
मैं देख न पाऊँगी ,
मैं दहेज की खातिर
न जान गवाऊ्ँगी।
अपने परिवार को गाली
मैं न सह पाऊँगी,
सास ससुर ननद देवर के
नखरे मैं नहीं उठाऊँगी।
बहू भी बेटी होती है
न समझा पाऊँगी।
?सुधीर श्रीवास्तव