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6 May 2020 · 2 min read

” बचपन “

मन करता है, फिर सुनने का,
क़िस्सा राजा-रानी का।
दूर देश से आई कोई,
नन्हीं राजकुमारी का।

छुट्टी मेँ माँँ के सँग जाना,
घर वो नाना-नानी का।
चिढ़ा-चिढ़ा कर,पल मेँ प्यार,
जताना मामा-मामी का।

दादी के खुरदुरे हाथ की,
लाड़ लुटाती थापी का।
पतझड़ से रीती डाली ज्योँ,
हृदय वसन्ती थाती का।

प्रति-पल प्यार लुटाते पापा,
साया ज्योँ अमराई का।
ग़लती पर भीगी बिल्ली सब,
डर जो मार-कुटाई का।

चश्मा खोने पर झुँझलाना,
या फिर खोना छतरी का।
मिलते ही, दुलराते बाबा,
खेल हमारी मरज़ी का।

कभी चुहल, मनुहार कभी,
हँसने का, कभी रुलाई का।
खेल अगर इस पल,अगले पल,
होता ठान लड़ाई का।

पानी मे झुककर,कागज़ की,
नाव चलाती टोली का।
फिरते कभी जहाज उड़ाते,
बेफ़िक्री, हमजोली का।

भरी दुपहरी, कभी खेलते,
चकिया-चूल्हा, मिट्टी का।
रोते-गाते, ख़ुशी मनाते,
ब्याह रचाते, गुड्डी का।

आइस-पाइस खेल कभी,
लुकती,छुपती उस बारी का।
रोब जमाता कोई, खेल,
जब होता चोर-सिपाही का।

सावन में झूला पड़ता,
उस नीम वृक्ष की डाली का।
मस्त फुहारें, गीत सुनाती,
अल्हड़ सखी सहेली का।

सदा अनोखी राह बनाता,
रिश्ता बहन व भाई का।
पल मेँ होता मेल अगर,
पल मेँ व्यवहार ढिठाई का।

सब को समझाती,बहलाती,
माँ की उस चतुराई का।
धौल जमाती कभी घुड़क के,
कभी प्यार की, बानी का।

कभी डाँटते, कभी खेलते,
चँचल, चाचा-चाची का।
कभी न थकते हाथ-पाँव,
ऐसे उन, काका-काकी का।

आँगन मेँ पँगत खाती,
उस प्यारी लोटा-थाली का।
काम-काज,मुन्डन,शादी मेँ,
पत्तल,कुल्हड़, प्याली का।

फिर से सुनूं बखान कभी मैं,
दिया, तेल और बाती का।
मन में “आशा” दीप जले,
तम हरे, अमावस काली का..!

रचयिता-
Dr.Asha Kumar Rastogi
M.D.(Medicine),DTCD
Ex.Senior Consultant Physician,district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist,sri Dwarika hospital,near sbi Muhamdi,dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M 9415559964
——-//——-//——-//——-//—

Language: Hindi
22 Likes · 31 Comments · 696 Views
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