Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Oct 2021 · 3 min read

‘पितृ अमावस्या’

‘पितृ अमावस्या’
म्याऊँ-म्याऊँ की कातर ध्वनि ने दिवाकर की तंन्द्रा को भंग कर दिया था। वह पचच्चीस-तीस बरस पीछे की दुनिया में खोया हुआ था। बीता हुआ एक-एक पल उसकी आँखों के सामने चल-चित्र सा नजर आ रहा था । उसे ऐसा एहसास हो रहा था जैसे वो तीस साल पुरानी जिन्दगी में जी रहा हो।
पढ़ाई पूरी करने के बाद वो नौकरी की तलाश में शहर क्या गया कि वहीं का होकर रह गया था।
माता-पिता छोटे भाई के साथ गाँव में ही रहते थे। एक साल पहले ही उसके पिता का स्वर्गवास हुआ था।
दिवाकर अपने पिता की बरसी करने के लिए गाँव आया हुआ था। दोनों भाई पिता की बरसी खूब धूम-धाम से करना चाहते थे। 51 ब्राह्मणों को भोज का निमंत्रण के साथ-साथ पूरा गाँव भी आमंत्रित था।
पाँच दिन बाद पिता की बरसी थी। उसके मन में अचानक विचार आया कि क्यों न इस बार गाँव में हर परिवार से मिल लिया जाए। बस वो हर घर में जाकर सबसे मिलता- जुलता और हाल-चाल पूछता। कुछ लोग तो स्वर्ग सिधार गए थे। जिनके सामने वह पला-बढ़ा और खेला-कूदा था। कुछ काफी उम्र के हो गए थे। उनसे मिलकर उसे बहुत अच्छा लगा था। कुछ दोस्त भी दूर-दूर चले गए थे ।एक दो दोस्त वहीं गाँव में खेती बाड़ी करते थे।
एक दिन दिवाकर पुरानी यादों को समेटे हुए घर की ओर चला जा रहा था कि अचानक उसकी नज़र एक पुरानी खंडहर सी झोंपड़ी पर पड़ी।वह कुछ देर वहीं ठिठक गया; अगले पल कुछ सोचते हुए वह तेज -तेज कदमों से चलता हुआ अपने घर की तरफ निकल गया।वह सीधा किचन में गया और एक कटोरी आटा निकाल कर देशी घी में उसका हलवा बना दिया। उसने एक दोना लिया और उसमें हलवा भरकर घर से निकल पड़ा।
अंधेरा होने लगा था रात्रि के सात बज रहे थे, रात भी अंधेरी थी और ऊपर से पितृविसर्जन अमावस्या। दिवाकर तेज चाल से चलता हुआ उस खंडहर सी झोंपड़ी के पास रुक गया। जिसके टूटे फूटे दरवाजे पर जंग लगी सांकल अभी भी कुंडे से लटक रही थी।
झोपड़ी की पीछेवाली कच्ची दीवार पर एक एक खुली खिड़की थी।
दिवाकर ने दोना खिड़की से अंदर सरका दिया था। तभी अचानक एक हवा का झोका आया और दोना अंदर जा गिरा। जैसे दिवाकर की भेंट स्वीकार कर ली गई हो।
दिवाकर कर को अपने बचपन की पुरानी बातें याद आने लगीं। कैसे सब बच्चे वीरा ताई को इसी खिड़की से रात को आकर सिरकटे भूत के नामसे डराया करते थे।
और दोपहर को उसके आंगन में लगे जामुन के पेड़ के नीचे बैठकर लड़कियाँ गिट्टे खेलती थी और लड़के मिट्टी में गड्ढे बना-बना कर कंचे खेला करते थे। खूब शोरगुल मचाने पर ताई सब को अपने अपने घर जाने को कहती थी,पर किसी पर कोई असर कहाँ होता था! ताई अकेली जो रहती थी। हम बच्चे ही ताई का छोटा-मोटा काम भी कर दिया करते थे; खासकर रसोई का छुट-पुट सामान लाना, चूल्हे में फूँक मारना , कुंँए से पानी भर लाना आदि। कभी-कभी ताई आटे का देशी घी में बना हलवा भी बच्चों को खिलाती थी। उन्हे आटे का देशी घी में बना हलवा बहुत पसंद था। सभी वीरा ताई से घुल-मिल गए थे। दिवाकर ने सोचा न जाने गाँव फिर कब आना होगा। क्यों न ताई को भी श्रद्धांजलि देता जाऊँ।
और न जाने क्या-क्या सोच रहा था दिवाकर ?तभी बिल्ली की आवाज उसे वर्तमान में ले आई थी, जैसे वीरा ताई ही उसे साक्षात आशीष दे रही थी ।

मौलिक एवं स्वरचित
लेखिका-Gnp
©®

Language: Hindi
340 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
*सीढ़ी चढ़ती और उतरती(बाल कविता)*
*सीढ़ी चढ़ती और उतरती(बाल कविता)*
Ravi Prakash
खाने को पैसे नहीं,
खाने को पैसे नहीं,
Kanchan Khanna
*जातक या संसार मा*
*जातक या संसार मा*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
तेरे प्यार के राहों के पथ में
तेरे प्यार के राहों के पथ में
singh kunwar sarvendra vikram
श्रेष्ठता
श्रेष्ठता
Paras Nath Jha
क्यों पड़ी है गांठ, आओ खोल दें।
क्यों पड़ी है गांठ, आओ खोल दें।
surenderpal vaidya
साधना की मन सुहानी भोर से
साधना की मन सुहानी भोर से
OM PRAKASH MEENA
मेरी अम्मा तेरी मॉम
मेरी अम्मा तेरी मॉम
Satish Srijan
"सूर्य -- जो अस्त ही नहीं होता उसका उदय कैसे संभव है" ! .
Atul "Krishn"
बड़े दिलवाले
बड़े दिलवाले
Sanjay ' शून्य'
आज़माइश
आज़माइश
Dr. Seema Varma
*आ गई है  खबर  बिछड़े यार की*
*आ गई है खबर बिछड़े यार की*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
!! फूल चुनने वाले भी‌ !!
!! फूल चुनने वाले भी‌ !!
Chunnu Lal Gupta
गीत(सोन्ग)
गीत(सोन्ग)
Dushyant Kumar
3055.*पूर्णिका*
3055.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
“जब से विराजे श्रीराम,
“जब से विराजे श्रीराम,
Dr. Vaishali Verma
दोस्ती गहरी रही
दोस्ती गहरी रही
Rashmi Sanjay
ग़ज़ल/नज़्म - फितरत-ए-इंसा...आज़ कोई सामान बिक गया नाम बन के
ग़ज़ल/नज़्म - फितरत-ए-इंसा...आज़ कोई सामान बिक गया नाम बन के
अनिल कुमार
If.. I Will Become Careless,
If.. I Will Become Careless,
Ravi Betulwala
राम-वन्दना
राम-वन्दना
विजय कुमार नामदेव
जब ऐसा लगे कि
जब ऐसा लगे कि
Nanki Patre
दोहा छन्द
दोहा छन्द
नाथ सोनांचली
चंद अशआर - हिज्र
चंद अशआर - हिज्र
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
■ जिसे जो समझना समझता रहे।
■ जिसे जो समझना समझता रहे।
*Author प्रणय प्रभात*
माँ
माँ
Kavita Chouhan
लोकसभा बसंती चोला,
लोकसभा बसंती चोला,
SPK Sachin Lodhi
बेटी
बेटी
Neeraj Agarwal
देखिए इतिहास की किताबो मे हमने SALT TAX के बारे मे पढ़ा है,
देखिए इतिहास की किताबो मे हमने SALT TAX के बारे मे पढ़ा है,
शेखर सिंह
प्रेम
प्रेम
Pratibha Pandey
छोटी छोटी खुशियों से भी जीवन में सुख का अक्षय संचार होता है।
छोटी छोटी खुशियों से भी जीवन में सुख का अक्षय संचार होता है।
Dr MusafiR BaithA
Loading...