नारी
नारी तो नारी नहीं, मां शक्ति का एक रूप है।
हैं नहिं अबला महज वो,जगत का एक प्रारूप है।।
इतिहास भी कहता यह, नहिं वो दीन व असहाय है।
झांसी की रानी वही, ममता में पन्ना धाय है।।
भूलकर भी सोचना मत वो महज कमजोर है।
क्रोध में काली वही है,कड़क और कठोर है।
सतीत्व में सावित्री है,जन जन करे गुणगान है।
मर्यादा में सीता है ,पाती सहज सम्मान है।
सब कुछ अपना अर्पण करती,जिस पर होती वह दयावान।
मां बनकर प्यार लुटाती है,उसकी बस यही है पहचान।
नारी को अबला कहकर तुम, उसका मान घटाओ नहिं।
वो तो जननी जननायक की, इसको तुम झुठला़ओ नहिं।।
वो डूब गया तम सागर में,नारि का जिसने न मान किया।
वह दृश्य तुम्हारे सम्मुख है, रावण का क्या है हश्र हुआ।।
पाकर छाया उस आंचल की, नित लहलहाते हैं चमन।
छूता जो अहं की ऊंचाई,करती है सामूल दमन।।
जिसकी ममता के पोषण से खिलखिलाते हैं सदन।
ऐसी सशक्त नारी को बस मेरा नमन मेरा नमन ।।
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अटल मुरादाबादी
ओज व व्यंग कवि
9650291108 & 8368370723
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