दग्ध हुई वसुधा उर की……!!
विधा:- गीत
दिनांक:- २/०९/२०२१
दिवस:- गुरुवार
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दूर पिया सुधि लेत नहीं,
किससे सजनी यह बात बखाने।
दग्ध हुई वसुधा उर की,
हिय आज उन्हें बस निष्ठुर माने।।
छोड़ि गये किस कारण से अब ढूंढ रही अँखियाँ दिन राती।
भूल गये परदेश बसे यह सोच सदा धड़के निज छाती।
कारन कौन जु पात पढ़ी नहि लाख लिखी पिय को प्रिय पाती।
भेज रही खत रक्त सनी बस मान यही अब अंतिम थाती।।
शूल चुभे मन कम्पित है,
तन साजन देश तजे हठ ठाने।
दग्ध हुई वसुधा उर की,
हिय आज उन्हें बस निष्ठुर माने।।
देख दशा हिय की सजना सच पागल सी दिन-रात रहूं मैं।
नैन बसा छवि नित्य सतावत सोवत जागत पंथ गहूं मैं।
भेज रही खत पीर भरा अब कौन विधा यह घात सहूं मैं।
सोच रही पिय से मिल लूं उर से उर की कछु बात कहूं मैं।।
भूख मिटा अरु प्यास गई,
मन साजन को खलनायक जाने।
दग्ध हुई वसुधा उर की,
हिय आज उन्हें बस निष्ठुर माने।।
उत्तर – दक्खिन पूरब – पश्चिम साजन को अब ढूंढत नैना।
धाम मिला गर बालम का उनसे मिलकै मिलिबै हिय चैना।
पात लिखी यह बोल सखी अब आप बिना यह जीवन छैना।
आन मिलो शुभ ही शुभ से तव टोह रही मृदु मोहक रैना।।
भृंग बने पिय डोल रहे,
पर का कबहूँ हमका पहिचाने।
दग्ध हुई वसुधा उर की,
हिय आज उन्हें बस निष्ठुर माने।।
घोषणा:- यह रचना पूर्णतः स्वरचित, स्वप्रमाणित एवं मौलिक है
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा ( मंशानगर ), पश्चिमी चम्पारण, बिहार