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6 Oct 2021 · 2 min read

टैरेस गार्डेन

घर की छत पर फूलों के साथ सजावटी पौधे भी लगा रक्खे है। ये शौक मुझे मेरी मां से मिला, वो तुलसी भक्त थी। तुलसी पौधे के श्रृंगार के लिए अगल-बगल फूलों के गमले भी रखती थी, देखने मे अच्छा तो लगता ही था साथ ही फूलों की सुगंध से मन प्रसन्न रहता था। धीरे-धीरे उन दो चार पौधों से बढ कर टैरेस, गार्डेन में परिवर्तित हो गया। बच्चे भी इंटरेस्टेड हुए, आज सभी विवाहित बच्चों के घरों में छोटे बडे अपने-अपने गार्डेन है, जिन्हें देख के मन को अजीब सी खुशी मिलती है। पौधे को लगाना उनकी सेवा करना और बढते हुए देखना वैसा ही सुखद एहसास है जैसा मां को बच्चों को पालने पोषने मे होता है।

मेरी पत्नी धर्मपरायण, सेवा भाव से युक्त, ममतामयी सभी को अपने वात्सल्य प्रेम से बांध के रखने वाली को इन पेड पौधों से खास लगाव न था, हां इनकी देख भाल मे मदद जरूर करती थी एवं देख के गर्वित भी होती थी। हाल ही मे, हम सबको अकेला छोड असमय ही परलोक सिधार गयीं। शमशान से उनकी अस्थियाँ चुनते समय थोडी चिता की राख भी साथ लाया था, मंशा ये थी कि गार्डेन के पौधों की मिटटी में मिला दूंगा साथ ही उनकी याद मे एक पौधा भी लगाऊंगा ताकि उनके होने का एहसास हमेशा बना रहे। मौके की तलाश थी, क्यो कि ये बात सभी को मालुम न थी। याद मे लगाए जाने वाले परमानेन्ट पौधे की भी जरूरत थी।

मौका और पौधा दोने मिल गये। बडी बेटी रिन्कू उन दिनो साथ ही थी उसे भी गार्डेनिग का शौक है, से कहा – ‘आओ नया पौधा लगाते है।’ वो सहर्ष तैयार हो गयी। उस दिन हम पिता-पुत्री ने काफी समय गार्डेन में बिताया उसने भरपूर मदद की, फिर 5 नये पाट्स मे पुराने गमले से निकाले गये बडे होते पौधों के साथ यादगार पौधा भी लगाया गया साथ ही राज भी खोल दिया कि इस तरह तुम्हारी मम्मी के होने का एहसास हमेशा जिन्दा रहैगा।अगले दिन वो चली गईँ। कुछ दिनो बाद किसी काम से कुछ घंटो के लिए फिर आईं, व्यस्तता अधिक होने के कारण समय ही नही मिला। चलते समय मिलने पर बोली – ‘चलती हूं पापा जी फिर आऊंगी।’ अचानक रूधे हुए गले से मेरी आवाज निकली – ‘मम्मी से नहीं मिलोगी।’ वो बोली – ‘मिल आई पापा जी, वो स्वस्थ्य और प्रसन्न है, मुझे आशीर्वाद भी दिया।’

टैरेस गार्डेन में उनकी याद मे, उसके सहयोग से लगाया गया पौधा ग्रो कर रहा है।

स्वरचित मौलिक
?
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 216 Views
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